UPSI 2025 Mool Vidhi Chapterwise Topics: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988

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UPSI 2025 Mool Vidhi Chapterwise Topics: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 को भ्रष्टाचार निवारण तथा भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए 9 सिंतम्बर, 1988 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई तथा 12 सितम्बर, 1988 को लागू किया गया था।

● इस अधिनियम में 5 अध्याय तथा 31 धारायें सम्मिलित हैं।

● भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम, 2018 द्वारा संशोधन के पश्चात इस अधिनियम में धारा – 4 (क), धारा-17 (क) धारा 17 (ख) तथा धारा-18 (क) को जोड़ा गया।

धारा-1 संक्षिप्त नाम व विस्तार से संबंधित है।

यह धारा भारत के उन सभी नागरिकों पर भी लागू होती है, जो भारत के बाहर (विदेश) में निवास करते हैं।

धारा-2 अधिनियम के कुछ विशेष शब्दों की परिभाषाओं से संबंधित है।

धारा -2 (क) निर्वाचन के अभिप्राय से संबंधित हैं।

धारा 2 (ख) लोक कर्त्तव्य की परिभाषा देता है।

धारा -2 (ग) लोक सेवक से संबंधित व्यक्तियों के विषय में जानकारी देता है।

(i) कोई व्यक्ति जो सरकार का सेवाकर्ता हो या सरकार से वेतन प्राप्त करता है।

(ii) जो किसी लोक प्राधिकरण का सेवाकर्ता या वेतन पाता हो।

(iii) कोई न्यायाधीश

(iv) कोई व्यक्ति जो किसी प्रशासन से संबंधित कर्त्तव्य का पालन करता हो।

(v) कोई व्यक्ति, जो सरकारी नियंत्रण या सहायता प्राप्त किसी निकाय या कंपनी या प्राधिकरण की सेवाकर्त्ता या वेतन प्राप्त हो, जो केन्द्रीय या राज्य या प्रांतीय अधिनियम के अधीन स्थापित निगम या सरकारी नियंत्रण में हो।

धारा 3 :- अपराधों के विचारण के लिए विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित ।

● विशेष न्यायाधीश की नियुक्ति केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध या षड्यंत्र करने या करने का प्रयास या किसी दुष्प्रेरण के लिए की जाएगी।

● विशेष न्यायाधीश की नियुक्ति भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत सेशन न्यायाधीश या सहायक न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश में से की जाती है।

धारा 5 :- भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अनुसार विशेष न्यायाधीश वारंट मामलों के लिए अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के लिए अनुसरण किया जाएगा।

धारा 7 :- लोक सेवकों द्वारा अपने कार्य के संबंध में वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारितोषण प्राप्त करने से संबंधित हैं, अर्थात् रिश्वत से संबंधित है।

● इस अपराध के लिए अपराधी को तीन वर्ष से सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना से दण्डित किया जाएगा।

धारा-7 (क) निजी प्रभाव या भ्रष्ट साधनों का प्रयोग करके किसी लोक सेवक को असम्यक लाभ प्राप्त करने के लिए सहमत करने पर तीन वर्ष से सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना दंडित किया जाएगा।

धारा 8 :- कोई व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति को रिश्वत देता है-

(i) किसी के द्वारा विवशता में दी गई रिश्वत अपराध नहीं परन्तु व्यक्ति इस कृत्य के होने के 7 दिन के अन्दर अन्वेषण अधिकरण को सूचित करना अनिवार्य होगा।

(ii) किसी लोक सेवक को किसी लोक कर्त्तव्य को अनुचित रूप से करने के लिए इनाम देना अपराध की श्रेणी में आयेगा।

धारा 9 :- किसी वाणिज्यिक संगठन द्वारा किसी लोक सेवक को रिश्वत देना अपराध माना जाएगा।

धारा 10 :- के अनुसार किसी वाणिज्यिक संगठन के मुख्य व्यक्ति के अपराधी पाये जाने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है।

धारा 11:- लोक सेवक द्वारा बिना प्रतिफल या अपर्याप्त प्रतिफल द्वारा मूल्यवान वस्तु प्राप्त करना। इस अपराध के लिए कम-से-कम 6 माह तथा अधिक-से-अधिक 5 वर्ष का कारावास तथा जुर्माना से दण्डित किया जाएगा।

धारा 12 :- के तहत धारा – 7 तथा धारा-11 में वर्णित अपराधों के दुष्प्रेरण के लिए दण्ड का प्रावधान।

● इसमें न्यूनतम 3 वर्ष तथा अधिकतम 7 वर्ष के लिए कारावास तथा जुर्माना से दण्ड का प्रावधान है।

धारा 13 :- लोक सेवकों द्वारा आपराधिक अवाचार से संबंधित प्रावधान किया गया है।

(i) यदि किसी लोक सेवक द्वारा उसे सौंपी कोई सम्पति का दुरुपयोग या बेईमानी करता है, तो

(ii) यदि लोक सेवक द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान स्वयं को साशय समृद्ध किया जाता है, तो ये कृत्य अपराध की श्रेणी में आते हैं।

धारा 15 :- अपराधिक अवाचार के लिए दण्ड से संबंधित है।

धारा 17 :- अन्वेषण करने से संबंधित प्राधिकृत व्यक्ति से संबंधित प्रावधान है।

● इसके अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत कोई भी पुलिस अधिकारी (निरीक्षक पद से नीचे न हो) बिना वारेण्ट गिरफ्तारी करने संबंधित अधिकार दिये गये हैं।

● यदि किसी ऐसे मामले, जिसमें आय से अधिक सम्पत्ति से संबंधित अन्वेषण करना है, तो पुलिस अधीक्षक से नीचे की रैंक का अधिकारी न हो।

धारा 18 :- बैंककारी बहियों के निरीक्षण से संबंधित प्रावधान सम्मिलित है।

● इस अधिनियम का अध्याय 4 (क) सम्पत्ति की कुर्की तथा समपहरण से संबंधित है।

धारा 19 :- किसी भी अभियोजन के लिए पूर्वस्वीकृति आवश्यक होगी।

● यदि कोई मामला केन्द्र सरकार के लोक सेवकों से संबंधित है, तो केन्द्र सरकार की पूर्वस्वीकृति आवश्यक होगी।

● यदि कोई मामला राज्य सरकार के लोक सेवकों से संबंधित है, तो राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी।

धारा 21 :- किसी दण्डनीय अपराध के अभियुक्त के लिए सक्षम साक्षी होना तथा अपने विरुद्ध अपने साथ आरोपित किसी व्यक्ति के विरुद्ध किए गए आरोपों को सिद्ध करने संबंधित शपथ पर साक्ष्य दे सकेगा।

धारा 27 :- उच्च न्यायालय को प्राप्त शक्ति एवं प्रक्रिया का प्रयोग कर अधिनियम में अपील तथा पुनरीक्षण करने का प्रावधान किया गया है।

● उच्च न्यायालय अपनी स्थानीय सीमाओं के अन्दर मामले का विचारण करने वाला विशेष न्यायालय को सेशन न्यायालय माना जाएगा।

भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 2018

● यह अधिनियम 24 जुलाई, 2018 लोकसभा में पारित किया गया।

● 19 जुलाई, 2018 में राज्यसभा में पारित किया गया है।

● इस अधिनियम के द्वारा 7 धाराओं के स्थान पर 3 नई धाराओं को जोड़ा गया, जिनमें धारा 17 (क), धारा-18 (क) तथा धारा – 29 (क) सम्मिलित है।

● इस अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति द्वारा किसी लोकसेवक को रिश्वत दिये जाने के अपराध स्वरूप कम-से-कम 3 वर्ष तथा अधिक-से-अधिक 7 वर्ष का कारावास तथा जुर्माना का उपबंध किया गया।

UPSI 2025 Mool Vidhi Chapterwise
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पिछले 2 व अधिक सालों से जीवित, सजीव, बेबाक और ठोस लेखनी की छाप छोड़ते आये इंजीनियर उमेश यादव, जिला फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश के रहने वाले है। आगरा विश्वविघालय से B.A और UPBTE से पॉलीटेक्निक डिप्लोमा (ME) और UPBTE से B.Tech (ME)करने के बाद आजकल फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश मे रहते हुए स्वतंत्र लेखन कार्य के प्रति प्रतिबद्ध व समर्पित है। सरकारी नौकरी, प्राईवेट नौकरी, के सभी विषय बार + Chepter Wise Study material सहित अन्य सभी विषयों पर गंभीर, जुझारू और आलोचनात्मक / समीक्षात्मक लेखनी के लिए इंजीनियर उमेश यादव कई बार विवादों का शिकार होते हुए निडरतापूर्वक लेखन करने के लिए जाने जाते है।

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