UP SI 2025 Mool Vidhi Exam Refresher Chapterwise उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड (UPPRB) उत्तर प्रदेश पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करने जा रहा है। परीक्षा दो चरणों में आयोजित की जाएगी, एक लिखित और एक शारीरिक परीक्षा।
इस आर्टिकल की मदद से हम प्रत्येक उम्मीदवार को उत्तर प्रदेश पुलिस सब इंस्पेक्टर प्रीवियस क्वेश्चन पेपर 2021 की सभी पीडीएफ उपलब्ध करा रहे हैं। यदि आपको उत्तर प्रदेश पुलिस सब इंस्पेक्टर प्रीवियस क्वेश्चन पेपर 2023 की पीडीएफ चाहिए तो आप निचे दिए गए Teligram लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं।
UP SI 2025 Mool Vidhi Exam Refresher Chapterwise: भूमि सुधार एवं भू-राजस्व संबंधी कानूनी प्रावधान
भूमि सुधार एवं भू-राजस्व संबंधी कानूनी प्रावधानः-
● जमींदारी प्रथा ब्रिटिश राज्य की देन है। यह प्रथा शुरू से ही भारतीय परम्परागत सिद्धान्तों एवं विचारों के विरोध में रही है। इस कारण देश के विद्वानों और नेताओं ने हमेशा इसकी अलोचना की है।
●प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात जब किसान जागरूक हुये, तो उन्होने जमींदारी प्रथा को दमन, अक्षमता और भ्रष्टाचार के अस्त्रों के रूप में देखा।
● यह असंतोष ही आगे चलकर किसान आन्दोलन का प्रमुख कारण बना।
● किसान आन्दोलन के फलस्वरूप ही सन् 1921 में अवध रेंट (संशोधन) अधिनियम और सन् 1926 में आगरा काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया। परन्तु किसानो की समस्याओं का निवारण ये अधिनियम नही कर सके।
● भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा वर्ष 1935 में लखनऊ अधिवेशन में राज्य में जमींदारी-उन्मूलन का सिद्धान्त स्वीकृत किया गया।
● वर्ष 1937 में जब पहला कांग्रेस मंत्रिमण्डल बना तो इसने भूमि – सुधार कार्य आरम्भ किया तथा उत्तर प्रदेश काश्तकारी अधिनियम, 1939 को पारित कर किसानों की स्थिति सुधारने का प्रयास किया।
● राज्य की विधान सभा ने उत्तर प्रदेश में 8 अगस्त 1946 को जमींदारी उन्मूलन के सिद्धान्तों को स्वीकृत कर एक प्रस्ताव पारित किया।
● कई चरणों से गुजरता हुआ उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक का संशोधित रूप 10 जनवरी 1951 को विधान सभा द्वारा और 16 जनवरी 1951 को विधान परिषद द्वारा पारित किया गया।
● उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम को 26 जनवरी 1951 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी प्रदान की गई तथा 26 जनवरी 1951 को यह भूमिविधि का हिस्सा बन गया।
● डिजिटल इंडिया भूमि आधुनिकीकरण कार्यक्रम (D.I.L.A.R.M.P) जिसे पहले राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम नाम से जानते थे।
● यह भूमि अभिलेखो के प्रबन्धन के आधुनिकीकरण, भूमि या संपत्ति विवाद को कम करने के लिये, भू-अभिलेखों की रख-रखाव पद्धति मे पारदर्शिता को बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा आरम्भ किया गया था।
उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 :-
● यह विधेयक 10 जनवरी 1951 को विधान सभा द्वारा और 16 जनवरी 1951 को विधान परिषद द्वारा पारित किया गया।
● इस अधिनियम को 26 जनवरी 1951 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी प्रदान की गई तथा 26 जनवरी 1951 को यह भूमिविधि का हिस्सा बन गया।
● यह अधिनियम शहरी क्षेत्रों को छोड़कर पूरे उत्तर प्रदेश में लागू है।
● राज्य सरकार द्वारा भूमि विधि में निहित होने की तिथि 1 जुलाई 1952 घोषित की गई थी।
● इस तिथि से ही जमींदारी के समस्त स्वामित्व वाली जमीनें राज्य सरकार में निहित हो गये थे।
अधिनियम की विशेषताएं :-
● यह अधिनियम दो भागों में है।
● प्रथम भाग ‘जमींदारी उन्मूलन’ तथा दूसरा भाग ‘भूमि सुधार’ से सम्बन्धित है।
● इस अधिनियम की निम्न विशेषताएं है-
(i) जमींदारी प्रथा का अन्त,
(ii) मुआवजे का भुगतान
(iii) पुनर्वास अनुदान का भुगतान
(iv) सभी के खेती के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करना।
(v) नई जोतदारी व्यवस्था
(vi) समान उत्तराधिकारी
(vii) भूमि को लगान पर उठाने का प्रतिबन्ध
(viii) अलाभकारी जोतों के निर्माण पर रोक लगाना।
(ix) अधिक भूमि एकत्र करने पर रोक लगाना।
(x) ग्राम जनतन्त्रों को स्थापित करना आदि।
● इस अधिनियम के उद्देश्य का पता अधिनियम की दी गई प्रस्तावना तथा कारणों के विवरण को एक साथ जोड़कर पढ़ने से चलता है।
अधिनियम की प्रस्तावना में निम्नलिखित उद्देश्य दिए गए हैं-
(i) किसान तथा राज्य के बीच मध्यवर्तियों के अस्तित्व से युक्त जमींदारी का उन्मूलन।
(ii) जमींदार उन्मूलन के फलस्वरूप भूमि अधिकारों संबंधी विधि में सुधार करना।
(iii) जमींदारों के अधिकारों, तथा हितो का अर्जन करना
(iv) जमींदारीं उन्मूलन के फलस्वरूप संबंधित अन्य तत्वों की व्यवस्था करना। जैसे भूमि आवंटन, अर्जित की गई भूमि का पर्यवेक्षण, संरक्षण, सुरक्षा व मालगुजारी की वसूली आदि करना।
उद्देश्य की सफलता :-
● जमींदारी उन्मूलन हुये काफी वर्ष हो चुके है तब भी यह अधिनियम अपने सभी उद्देश्य पूर्ति में सफल नही हुआ है, फिर भी अधिनियम की सफलता को निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
(1) मध्यवर्तियों का अन्त,
(2) लगान पर भूमि उठाने पर रोक,
(3) भूमि के अधिक जमा करने पर रोक,
(4) आसान जोतदारी व्यवस्था,
(5) अलाभकारी जोतों के निर्माण पर रोक,
(6) सहकारी कृषि प्रणाली को प्रोत्साहन देना,
(7) ग्राम-स्वायत्त प्रणाली का विकास,
जोतदारी
● उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम के लागू (प्रवृत्त) होने से पहले हमारे प्रदेश मे 14 किस्म की भ्रामक और जटिल जोतदारी (काश्तकारी) थीं।
● उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 ने जमींदारी उन्मूलन के साथ साथ इसकी प्राचीन जातेदारी की सभी किस्मों को खत्म कर दिया तथा उन्हें 4 श्रेणियों में विभाजित कर दिया था-
(1) भूमिधर
(2) सीरदार
(3) असामी और
(4) अधिवासी
● जिन जोतदारों को उच्च किस्म के अधिकार प्राप्त थे अथवा
● जिन्हें स्थानांतरणीय अधिकार प्राप्त थे वे सभी भूमिधर बन गये है। जिन्हें स्थानांतरणीय अधिकार प्राप्त नहीं थे, वे सीरदार कहलाये।
● कुछ विशेष किस्म के और काश्तकार थे, जिन्हें भूमि में स्थायी अधिकार प्राप्त नहीं थे।
● ये जमीदारों व क्षेत्रपति की इच्छा से खेतों पर जबरन कब्जा करते थे।
● ऐसे काश्तकार बहुसंख्यक थे, जिन्हें किसानों के हितो की रक्षा करना आवश्यक समझते हुये उन्हें अधिवासी बना दिया गया था।
● इस वर्ग मे सीर के काश्तदार, शिकमी काश्तदार तथा दखीलकार सम्मिलित किये गये।
● ‘अधिवासी’ जोतदार सीरदार से छोटे तथा असामी से श्रेष्ठ थे यह एक अंतर कालीन किस्म थी।
● जिन्हें अधिनियम के प्रवृत्त होने के 5 वर्ष के पश्चात समाप्त हो जाना था।
● अधिनियम निर्माण समिति की मंशा यह थी कि ‘अधिवासी’ जोतदार लगान का 15 गुणा एकत्र करके भूमिधर बन सके।
● विधान मण्डल ने 5 वर्ष से पहले ही अधिवासी पर कृपा की व ‘उत्तर प्रदेश भूमि सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1954 को पारित कर दिया गया।
● इस अधिनियम ने सब अधिवासियों को सीरदारी अधिकार दे दिये जिससे सब अधिवासी सीरदार बन गये।
उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 (उ.प्र. अध्यादेश संख्या 4 सन् 2015 के द्वारा यथासंशोधित)
● यह अधिनियम 18 दिसम्बर 2015 से लागू किया गया।
● इस अधिनिमय में 16 अध्याय, 4 अनुसूची तथा 234 धाराएँ शामिल हैं।
धारा-1 संहिता का नाम, विस्तार और प्रारम्भ।
● यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 कहा जाएगा।
● इस विस्तार सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा।
● यह ऐसी दिनाँक को प्रवृत्त होगा जैसा राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा नियत करे और विभिन्न क्षेत्रों के लिए या इस संहिता के विभिन्न उपबन्धों के लिए विभिन्न दिनांक नियत की जा सकती है।
धारा-2 संहिता का लागू होना।
धारा-3 संहिता का नए क्षेत्रों में विस्तार ।
धारा-4 परिभाषाएँ।
○ 4(1) आबादी
○ 4(14) भूमि ○ 4(2) कृषि ○ 4(16) राजस्व न्यायालय ○ 4(3) कृषि श्रमिक ○ 4(17) राजस्व अधिकारी ○ 4(4) बैंक ○ 4(18) उप जिलाधिकारी ○ 4(5) भूमि प्रबन्धक समिति ○ 4 (20) गाँव ○ 4(8) कलेक्टर ○ 4(23) कृषि वर्ष (1 जुलाई से 30 जून) ○ 4(11) बाग-भूमि ○ 4(12) जोत |
धारा-5 राज्य का राजस्व क्षेत्रों में विभाजन ।
मण्डलः दो या दो से अधिक जिले
जिलाः दो या दो से अधिक तहसील
तहसीलः दो या दो से अधिक परगना
परगनाः दो या दो से अधिक गांव हो सकेंगे
धारा-6 राजस्व क्षेत्रों का गठन।
धारा-7 राजस्व परिषद् ।
धारा-9 कार्य का वितरण करने की शक्ति ।
धारा-11 आयुक्त और अपर आयुक्त।
धारा-12 कलेक्टर और अपर कलेक्टर।
धारा-14 तहसीलदार और तहसीलदार न्यायिक ।
धारा-15 नायब तहसीलदार।
धारा-16 राजस्व निरीक्षक और लेखपाल ।
धारा-19 राजस्व अधिकारियों की अन्य शक्तियाँ
धारा-30 मानचित्र और खसरा का अनुरक्षण (कलेक्टर)
धारा-41 किसान बही (खतौनी)।
धारा-60 भूमि प्रबन्धक समिति द्वारा अधीक्षण, प्रबन्धन और नियंत्रण।
धारा-61 ग्राम तालाबों का प्रबन्धन ।
धारा-75 संक्रमणीय अधिकारों वाला भूमिधर ।
धारा-76 असंक्रमणीय अधिकारों वाला भूमिधर।
धारा-78 असामी ।
धारा-98 अनुसूचित जाति के भूमिधरों द्वारा अंतरण पर प्रतिबंध ।
धारा-99 अनुसूचित जनजाति के भूमिधरों द्वारा अंतरण पर प्रतिबंध ।
धारा-130 भूमिधरों को बेदखल न किया जाना।
धारा-147 सरकारी पट्टेदार की परिभाषा ।
धारा-149 सरकारी पट्टेदार की बेदखली।
धारा-170 बकाये की राशि वसूली हेतु प्रक्रिया।
धारा-172 जंगम सम्पत्ति की कुर्की और बिक्री।
धारा-174 जोत की कुर्की
धारा-223 जुर्माना आदि की वसूली की रीति।
धारा-233 नियम बनाने की शक्ति । (राज्य सरकार द्वारा)

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