UP SI Exam 2025: IPC और CRPC टॉपिक्स से पूछे जा सकते हैं IPC – Indian Penal Code Important Sections -UPSI 2025 दरोगा भर्ती ये महत्वपूर्ण सवाल, एक बार इनकी प्रैक्टिस जरूर कर लें IPC का नाम बदलकर BNS कर दिया गया और कुछ धारा में भी परिवर्तन किया गया है इससे पहला भाग में हम आपको 511 धारा बताएंगे जो की आने वाली भर्ती में पूछे जाएंगे जिन धाराओं में परिवर्तन किया गया है या नई तरीके से जोड़ी गई है उनको हम अलग से आपको इसी वेबसाइट www.gyanseva24.com पर बताएंगे
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) – 1860
महत्त्वपूर्ण बिन्दु :-
● IPC को 6 अक्टूबर 1860 में ब्रिटिश संसद में पेश कियागया।
● IPC 1 जनवरी 1862 को जम्मू और कश्मीर के अलावासम्पूर्ण भारत में लागू हो गई।
● 31 अक्टूबर 2019 से अब सम्पूर्ण भारत में (जम्मू-कश्मीर सहित) लागू है।
● IPC में 23 अध्याय एवं 511 धाराएँ निहित हैं।
● IPC का सबसे बड़ा अध्याय-17 है जबकि सबसे छोटा अध्याय 23 (सिर्फ एक धारा) है।
अपराध के प्रकारः-(1) संज्ञेय / गंभीर अपराध:-
○ इसके अन्तर्गत 3 या 3 वर्ष से अधिक की सजा का प्रावधान होता है। तथा अपराधी को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है।जैसे- चोरी, लूट, डकैती, हत्या आदि।
(2) असंज्ञेय अपराध:- ऐसे अपराध जिनमें गिरफ्तारी के लिए वारंट की आवश्यकता हो, असंज्ञेय अपराध कहलाते हैं।जैसे-मारपीट आदि।
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) – 1860 की महत्त्वपूर्ण धाराएं
अध्याय-1 उद्देशिका
धारा 1 :-संहिता का नाम एवं विस्तार क्षेत्र ।
धारा 2 :-भारत की सीमाओं के अंदर किए गये अपराधों का दण्ड।
धारा 3 :-भारत के बाहर किये गये अपराध होने पर भी IPC के अनुसार उस कृत्य को इस प्रकार माना जायेगा जैसे वह भारत में ही हुआ हो।
धारा 4 :-राज्य क्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार।
धारा 5 :-कुछ उपबन्ध ऐसे हैं जिन पर IPC लागू नहीं होती जैसे-सेनाएं
Note :-सेना को भारतीय सेना अधिनियम 1950 के तहत न्याय दिया जाता है जिसे कोर्ट मार्शल कहते हैं।
अध्याय – 2 साधारण स्पष्टीकरण
• धारा 8 :-लिंग।
पुल्लिंग वाचक शब्द जहाँ प्रयोग किए गये हैं वे प्रत्येक व्यक्ति के बारे में लागू हैं चाहे स्त्री हो या पुरुष ।
धारा 9 :-वचन ।
एकवचन और बहुवचन शब्दों की व्याख्या ।
धारा 10 :-पुरुष और स्त्री। इसके अनुसार, नाबालिग कम उम्र का किशोर या जवान लड़का या फिर कोई बुजुर्ग शख्स, सभी के लिए ‘पुरुष’ शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा तथा इसी प्रकार कोई छोटी बच्ची हो, किशोरी या फिर कोई बुजुर्ग महिला सभी के लिए ‘स्त्री’ शब्द का प्रयोग होगा।
धारा 11 :-व्यक्ति ।
इसके अनुसार, कोई भी कंपनी या संगम या व्यक्ति निकाय चाहे वह निगमित हो अथवा नहीं को ‘व्यक्ति’ शब्द से सम्बोधित किया जायेगा।
धारा 12 : लोक की परिभाषा ।
इसके अन्तर्गत समाज के किसी वर्ग या समुदाय को ‘जनता / सामान्य जन’ शब्द से सम्बोधित किया जायेगा।
धारा 14 : ‘सरकार का सेवक’ शब्द को परिभाषित करती है।
धारा 17 :- सरकार की व्याख्या।
‘सरकार’ शब्द केन्द्रीय सरकार (Central Government) या किसी भी राज्य की सरकार (State Government) का द्योतक है।
धारा 18 : भारत (राज्य + केन्द्रशासित प्रदेश)
‘भारत’ से अभिप्राय जम्मू कश्मीर राज्य के अलावा भारत के राज्य क्षेत्र से है लेकिन अगस्त 2019 से ‘भारत’ शब्द का अर्थ जम्मू कश्मीर समेत सम्पूर्ण भारत से है।
धारा 19 : न्यायाधीश ।
ऐसा कोई भी व्यक्ति जो विधि द्वारा न्याय के लिए आबद्ध हो, को ‘न्यायाधीश’ शब्द से सम्बोधित किया जायेगा।
धारा 20 :- न्यायालय को परिभाषित करती है।
धारा 22 :- जंगम सम्पत्ति ।
इस धारा के अन्तर्गत हर तरह की चल सम्पत्ति आती है किन्तु भूमि या वे चीजें जो भू-बद्ध हों इसके अन्तर्गत नहीं आती।
धारा 23 : सदोष अभिलाभ तथा सदोष हानि को परिभाषित करती है।
धारा 24 : बेईमानी।
जब कोई व्यक्ति किसी को गलत ढंग से लाभ या हानि पहुँचाने के आशय से कोई कृत्य करता है तो यह कृत्य बेईमानी से किया जाना कहलाता है।
धारा 25 :- कपटपूर्वक ।
यदि कोई व्यक्ति किसी काम को कपट करने के उद्देश्य से करता है तो उसे कपटपूर्वक कृत्य कहा जाता है।
धारा 29 : दस्तावेज ।
‘दस्तावेज’ शब्द किसी भी विषय का द्योतक है।
धारा 33 : कार्य / लोप को परिभाषित करती है।
धारा 34 : सामान्य आशय ।
जब कई व्यक्ति समान इरादे से कोई आपराधिक कृत्य करते हैं तो उनमें से प्रत्येक इस कृत्य के लिए उसी तरह जवाबदेह होगा जैसे उसने अकेले इस काम को अंजाम दिया हो।
धारा 40 : अपराध की परिभाषा ।
इस धारा के अनुच्छेद 2 और 3 में वर्णित अध्यायों और धाराओं के अलावा अपराध शब्द इस संहिता द्वारा दण्डित की गई बात का द्योतक है।
धारा 41 :-विशेष विधि।
इस धारा का तात्पर्य किसी विशेष कानून से होता है, जो कि किसी विशेष विषय पर लागू होता है जैसे कोई ऐसा विषय जिस पर IPC की कोई भी धारा लागू न हो पा रही है, तब ऐसी परिस्थिति में मामले को निपटाने के लिए न्यायालय किसी अन्य विधि का सहारा लेता है तो वह IPC धारा-41 के अनुसार ही होता है।
धारा 44 : क्षति ।
क्षति शब्द का तात्पर्य चोट से है जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या सम्पत्ति को गैर-कानूनी रूप से पहुँचायी गई हो।
धारा 45 :’जीवन’ को परिभाषित करती है।
धारा 46 :’मृत्यु’ को परिभाषित करती है।
धारा 47 :’जीव-जन्तु’ को परिभाषित करती है।
धारा 49 :- ‘वर्ष या मास’ को परिभाषित करती है। वर्ष या मास की गणना ब्रिटिश कलैण्डर के अनुरूप की जायेगी।
धारा 51 : ‘शपथ’ को परिभाषित करती है।
धारा 52 : सद्भाव पूर्वक ।
यदि कोई भी बात सम्यक् सतर्कता, ध्यान और विश्वास से की जाए तो उसे ‘सद्भावपूर्वक’ माना जाएगा।
अध्याय – 3 दण्डों के विषय में
धारा 53 :- दण्ड की परिभाषा ।
इसके अंतर्गत दण्ड के निम्न 5 प्रकार बताये गये हैं-
- सम्पत्ति का समपहरण
2. मृत्युदण्ड
3. आजीवन कारावास
4, कारावास – सश्रम / कठोर कारावास -सादा/ साधारण कारावास
5.आर्थिक दण्ड अर्थात् जुर्माना
धारा 54 : मृत्युदण्ड का लघुकरण।
धारा 55 :- आजीवन कारावास का लघुकरण (14 वर्ष से कम)।
धारा 57 :- इसके अनुसार, दण्डावधियों की भिन्नों की गणना करने में आजीवन कारावास को बीस वर्ष के तुल्य गिना जायेगा।
धारा 63 : जुर्माने की रकम । यह रकम दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति को देखकर तय की जायेगी।
धारा 64 :- जुर्माना न देने पर कारावास ।
धारा 67 : जब अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो तो जुर्माना न देने की स्थिति में दण्ड की अवधि निम्न होगी।
● जब जुर्माना ₹50 हो कारावास 2 माह या इससे कम
● जब जुर्माना ₹100 हो 4 माह या इससे कम कारावास
● अन्य दशा में (₹100 से अधिक) कारावास 6 माह या इससे कम
अध्याय – 4 साधारण अपवाद
धारा 76 : कोई भी कार्य, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा कारित हो, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है, अपराध नहीं है।
धारा 80 : विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना, एक अपराध नहीं माना जाएगा।
जैसे :- A कुल्हाड़ी के द्वारा काम कर रहा है, कुल्हाड़ी का फल उसमें से निकलकर उछट जाता है और पास में खड़ा व्यक्ति उससे मारा जाता है। अतः यदि A की ओर से उचित सावधानी का कोई अभाव नहीं था तो उसका कार्य क्षमा योग्य है और कोई अपराध नहीं है।
धारा 82 :- सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य, एक अपराध नहीं माना जाएगा ।
धारा 83 :- सात वर्ष से अधिक किंतु बारह वर्ष से कम आयु के बालक की अपरिपक्व समझ, को अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 84 :- विकृतचित्त व्यक्ति का कार्य।
जो कार्य किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए, जो उसे करते समय मानसिक अस्वस्थता के कारण उस कार्य की प्रकृति या जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है, वह अपराध नहीं है।
धारा 87 :- सम्मति से किया गया कार्य, यदि कर्त्ता का आशय मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का नहीं है तो यह अपराध नहीं है।
जैसे :- कोई व्यक्ति खेल खेलने के लिए अपनी सहमति दे देता है तथा खेल विधिपूर्ण तरीके से और उचित सावधानी के साथ खेला जा रहा है और इस दौरान कोई भी घटना घट जाती है तो वह घटना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगी।
धारा 92 :- सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे हेतु सद्भावपूर्वक किया गया कार्य।
जैसे :- A, एक सर्जन, देखता है कि एक बालक दुर्घटना ग्रस्त है जिसका तुरंत ऑपरेशन न किया जाए, तो घातक साबित हो सकता है। बालक के अभिभावक के पास आवेदन का समय नहीं है। A, अच्छे विश्वास में, बालक के लाभ के आशय से ऑपरेशन करता है। A ने कोई अपराध कारित नहीं किया है।
धारा 93 :- सद्भावना पूर्वक दी गई संसूचना।
जैसे :- A एक शल्यचिकित्सक, एक रोगी को सद्भाव पूर्वक यह संसूचित करता है कि उसकी राय में वह जीवित नहीं रह सकता और इस आघात के फलस्वरूप उस रोगी की मृत्यु हो जाती है। इसमें A ने कोई अपराध नहीं किया है।
धारा 96 :- प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाने वाली कोई बात अपराध नहीं है।
धारा 97 :- शरीर तथा सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार।
धारा 100 :- निजी प्रतिरक्षा में मृत्यु तक कारित करने का अधिकार।
- जब लगे कि सामने वाले व्यक्ति का उद्देश्य हत्या कारित करना है।
- बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला।
- अप्राकृतिक सम्बन्ध ।
- अम्लीय हमला।
- व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला।
धारा 103 :- प्रोपर्टी (सम्पत्ति) बचाने में मृत्यु तक कारित करने का अधिकार। जब-
- चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार
- लूट
- रात्रि गृह भेदन हो।
अध्याय – 5 दुष्प्रेरण के विषय में
धारा 107 :- तीन प्रकार के दुष्प्रेरण बताए गये हैं।
- किसी व्यक्ति को उकसाना।
- साशय सहायता ।
- षड्यंत्र में शामिल न होना, पर कोई सहायता देना।
धारा 114 :- अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति ।
जब कोई व्यक्ति जो अनुपस्थित होने पर दुष्प्रेरक के नाते दण्डनीय होता, उस समय उपस्थित हो जब वह अपराध किया जाए जिसके लिए वह दुष्प्रेरण के फलस्वरूप दण्डनीय होता, तब यह समझा जाएगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है।
धारा 116:- कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण : यदि अपराध न किया जाए ।
जैसे :- मिथ्या साक्ष्य देने के लिए A, B को उकसाता है और यदि B मिथ्या साक्ष्य न दे, तो भी A ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है जिसके लिए वह दण्डनीय होगा।
धारा 119 :- लोक सेवक द्वारा अपराध करने की योजना को छिपाना, जिसे रोकना उसका कर्त्तव्य है।
अध्याय – 5 (A) आपराधिक षड्यंत्र
धारा 120A: आपराधिक षड्यंत्र की परिभाषा।
जब दो या अधिक व्यक्ति कोई अवैध कार्य अथवा कोई ऐसा कार्य जो, अवैध नहीं है, अवैध संसाधनो द्वारा करने या करवाने को सहमत होते हैं तब यह सहमति आपराधिक षड्यंत्र कहलाती है।
धारा 120B:- आपराधिक षड्यंत्र का दण्ड।
(मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या दो या दो से अधिक वर्ष की अवधि का कठिन कारावास)
अध्याय – 6 राज्य के विरुद्ध अपराध
धारा 121 :- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध या युद्ध करने का प्रयत्न करना।
( मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास + जुर्माना )
धारा 122 :- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना।
धारा 130 :- जो कोई जानते हुए किसी राजकैदी या युद्धकैदी को विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने में सहायता देगा या किसी ऐसे कैदी को छुड़ायेगा या किसी ऐसे कैदी को जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है, संश्रय देगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी प्रकार के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जायेगा साथ ही वह जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
अध्याय – 7 सेना से सम्बन्धित अपराध
धारा 132 :- किसी अधिकारी या सैनिक को विद्रोह के लिए दुष्प्रेरित करना।
धारा 140 :- सेना की वर्दी पहनना एक अपराध की श्रेणी में आयेगा जिसके लिए किसी भी प्रकार के कारावास से जिसकी अवधि 3 माह तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान है।
अध्याय-8 लोक शांति के विरुद्ध अपराध
धारा 141 :- “विधिविरुद्ध जमाव” (5 या 5 से अधिक व्यक्तियों का जमाव)
धारा 142 :- विधिविरुद्ध जमाव का सदस्य होना।
धारा 143 :- विधिविरुद्ध जमाव के लिए दण्ड। (6 माह तक कारावास या जुर्माना या दोनों)
धारा 144 :- आयुध, शस्त्र या ऐसी वस्तु जिससे किसी की मृत्यु कारित हो सकती हो, को लेकर विधिविरुद्ध जमाव में सम्मिलित होना।
धारा 146 :- बल्वा करना।
विधिविरुद्ध जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में जब बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तो ऐसे जमाव का प्रत्येक सदस्य बल्वा करने के अपराध का दोषी होगा।
धारा 147 :- बल्वा करने के लिए दण्ड।
(2 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों)
धारा 148 :- घातक आयुध से सज्जित होकर बल्वा करना। (3 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों)
धारा 159 :- दंगा की परिभाषा ।
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति लोक स्थान पर लड़कर लोक शांति में विघ्न डालते हैं तब यह दंगा कहलाता है।
धारा 160 :- दंगा करने के लिए दण्ड।
[1 माह तक कारावास या जुर्माना (₹100 तक ) या दोनों]
अध्याय – 9 लोक सेवकों से सम्बन्धित अपराध
धारा 166A:- लोक सेवक जब विधि की अवज्ञा करे जिससे किसी को क्षति कारित हो, इसके लिए उसे 6 माह से लेकर 2 वर्ष तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी देय हो सकता है।
धारा 166 B : -पीड़ित का उपचार न करना।
धारा 170 :- लोक सेवक का प्रतिरूपण।
सजा – 2 वर्ष तक कारावास या जुर्माना या दोनों।
Note :- इससे आगे की धाराएं अगले एपिसोड में दी जाएगी तो उसे एपिसोड को आप वेबसाइट पर जरूर देखें धाराएं अधिक होने के कारण एक पाठ में समाप्त नहीं की गई है इसके अलावा दो पार्ट और आएंगे उनमें सभी 511 धाराओं को कराया जाएगा

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