UP Police SI Moolvidhi Previous Year Question Paper उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड (UPPRB) उत्तर प्रदेश पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करने जा रहा है। परीक्षा दो चरणों में आयोजित की जाएगी, एक लिखित और एक शारीरिक परीक्षा।
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UP Police SI 2025 Moolvidhi Previous Year Question Paper: बाल संरक्षण अधिनियम
बाल संरक्षण अधिकार
● बाल अधिकार बालकों की देखभाल व विशिष्ट सुरक्षा के रूप में बालकों को मिलने वाले व्यक्तिगत मानवाधिकारों को कहा जाता है।
● बालकों को किसी भी प्रकार के खतरे व जोखिम की स्थिति में सुरक्षा का अधिकार है इन बालकों के मानवधिकारों तथा बाल अधिकारों के संरक्षण को ही बाल संरक्षण कहा जाता है।
● बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु “राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005” (N.C.P.C.R) यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियां कार्यक्रम व प्रशासनिक व्यवस्थाएँ, भारतीय संविधान के आदर्शों के अनुरूप हो।
भारतीय संविधान में बाल अधिकार–
● बच्चों को उनके नैसर्गिक अधिकार प्रदान करने और बाल श्रम पर रोक लगाने हेतु स्वतन्त्रता पूर्व कई प्रावधान किए गए थे। ‘बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम 1933′ बाल रोजगार अधिनियम 1938’, ‘भारतीय कारखाना अधिनियम 1940’ आदि कुछ प्रावधान है।
संविधान में बाल संरक्षण हेतु प्रावधान
● अनुच्छेद 21 (A) :- यह अनुच्छेद बालकों को शिक्षा का मौलिक अधिकार उपलब्ध कराता है।
● इसमे 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है।
● अनुच्छेद 15 (3) यह अनुच्छेद राज्य को यह अधिकार प्रदान करता है कि राज्य महिलाओं और बालकों के लिए भेदभाव के विरुद्ध विशेष उपबन्ध कर सकता है।
● अनुच्छेद 23 :- बलात्श्रम व मानव दुर्व्यापार का प्रतिषेध करने का प्रावधान करता है।
● अनुच्छेद 24 :- 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों का कारखाने-खनन या अन्य किसी प्रकार के जोखिम भरे कार्यों के लिये नियुक्त करना दण्डनीय अपराध हैं
● अनुच्छेदः- 39 में भाग-4 राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अधीन राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपनी नीतियों को इस प्रकार संचालित करे जिससे बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से मजबूर होकर उन्हें ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी उम्र व शक्ति के प्रतिकूल हो।
● अनुच्छेद 45 :- 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा का प्रबंध करना राज्य का कर्तव्य होगा।
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012
● इस अधिनियम का नाम ‘लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012’ है।
● इस अधिनियम को 19 जून 2012 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई तथा यह अधिनियम 14 नवम्बर 2012 से लागू (प्रवृत्त) हुआ ।
● संविधान के अनुच्छेद-15 का खण्ड (3) राज्य को महिला एवं बालकों के लिये विशेष उपबन्ध करने के लिये प्रावधान है।
● संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा अंगीकृत बालकों के अधिकारों से सम्बन्धित सम्मेलन को भारत सरकार ने 11 दिसम्बर 1992 को स्वीकृत किया है।
● यह अधिनियम लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न तथा अश्लील साहित्य के अपराधों से बच्चों को संरक्षण प्रदान करता है।
● बच्चों का लैंगिक शोषण और लैंगिक दुरुपयोग जघन्य अपराध है, उन पर प्रभावी रूप से कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
● धारा 2 – अधिनियम संबंधी कुछ परिभाषाएं –
● बालक :- ‘बालक’ से तात्पर्य उस व्यक्ति से जिसकी आयु 18 वर्ष से कम हो, इसके अंतर्गत बालक तथा बालिका दोनों आते हैं।
● साझी गृहस्थी – साझी गृहस्थी से आशय ऐसी गृहस्थी से है जहाँ अपराध से आरोपित व्यक्ति, बच्चे के साथ घरेलू संबंधी के रूप मे रहता है अथवा किसी समय रह चुका है।
बालकों के विरुद्ध लैंगिक अपराध-
● धारा 3 :- प्रवेशन लैंगिक हमला
● जब कोई व्यक्ति अपना लिंग, शरीर का कोई अन्य भाग या किसी वस्तु को, किसी भी सीमा तक किसी बालक की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या बालक से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है, तो इस प्रकार के हमले को प्रवेशन लैंगिक हमला कहा जायेगा।
● धारा 4 :- प्रवेशन लैंगिक हमले के लिए दंड
● जो कोई प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा, उसको न्यूनतम 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया जा सकता है और साथ ही जुर्माने से भी दंडनीय हो सकता है।
नोटः मूल अधिनियम में सजा की न्यूनतम अवधि 7 वर्ष थी, जिसे वर्ष 2019 में संशोधित कर 10 वर्ष कर दिया गया।
● जो कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम आयु के बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा, उस व्यक्ति को न्यूनतम 20 वर्ष कारावास से लेकर आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया जा सकता है और साथ ही जुर्माने से भी दंडनीय हो सकता है।
● धारा 5 :- गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला
निम्न परिस्थितियों मे गुरुतर प्रवेशन लैगिंक हमला माना जाएगा-
(i) कोई पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल या सुरक्षा बल का सदस्य होते हुए अथवा लोक सेवक होते हुए भी बालक या बालिका पर लैंगिक हमला करता है, तो वह गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला माना जायेगा
(ii) किसी अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक संस्था आदि का कोई सदस्य, प्रबन्धक या कर्मचारी बालक या बालिका पर लैंगिक हमला करता है, वह गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला माना जायेगा।
(iii) किसी जेल, प्रति प्रेषण गृह, संरक्षक गृह आदि का संरक्षक होते हुए बालक या बालिका पर लैंगिक हमला करता है, तो वह गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला माना जायेगा।
(iv) बालक अथवा बालिका पर सामूहिक लैंगिक हमला अथवा बालक अथवा बालिका की मानसिक तथा शारीरिक दोष का फायदा उठाते हुये उस पर लैंगिक हमला करता है, तो वह गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
● धारा 6 :- गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमले के लिए दंड
● जो कोई गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है, वह कठोर कारावास न्यूनतम 20 वर्ष व अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकता है तथा जुर्माना अथवा मृत्यु दण्ड भी दिया जा सकता है।
धारा 7 :- लैंगिक हमला
● जो कोई बालक या बालिका की योनि, लिंग गुदा या स्तनों को स्पर्श करता अथवा लैंगिक आशय से बालक या बालिका से ऐसा कोई अन्य कार्य करता है, जिसमें लिंग का प्रवेश हुये बिना शारीरिक सम्पर्क होता है, उसे लैंगिक हमला कहते हैं।
● धारा 8 :- लैंगिक हमले के लिए दंड
● लैंगिक हमला करने पर सादा या कठिन कारावास जिसकी सजा न्यूनतम 3 वर्ष व अधिकतम 5 वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माना भी दण्डनीय होगा।
अन्य महत्वपूर्ण धाराएँ
धारा संख्या | विषय |
11 | लैंगिक उत्पीड़न |
12 | लैंगिक उत्पीड़न के लिए दंड |
13 | अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक का उपयोग |
14 | अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक के उपयोग के लिए दंड |
15 | बालकों को संलिप्त करने वाली अश्लील सामग्री के भंडारण के लिए दंड |
19 | अपराधों की रिपोर्ट करना |
24 | बालक के कथन को अभिलिखित किया जाना |
25 | मजिस्ट्रेट द्वारा बालक के कथन का अभिलेखन |
27 | बालक की चिकित्सीय परीक्षा |
28 | विशेष न्यायालयों को अभिहित किया जाना |
32 | विशेष लोक अभियोजक |
यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019
● देश में बच्चों के साथ अमानवीय घटनाओं को देखते हुये मौजूदा कानूनों को और अधिक प्रभावी बनाने के उददेश्य से संसद द्वारा पॉक्सो कानून में संशोधन किया गया है।
● बालकों को यौन अपराधों से संख्या कम करने हेतु संसद द्वारा पॉक्सो [Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act] अधिनियम 2012 पारित किया गया था।
● इस अधिनियम के अन्तर्गत बालकों को यौन हमले, यौन उत्पीड़न, पोनोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों से बचाने का प्रयास किया गया है।
वर्तमान परिदृश्य
● राज्यसभा द्वारा 24 जुलाई 2019 को यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2012 पारित किया गया।
● यह विधेयक लोक सभा द्वारा 1 अगस्त 2019 को पारित किया गया।
● इस विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा 5 अगस्त 2019 को स्वीकृति प्रदान की गई।
● यह विधेयक ‘यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (pocso Act, 2012) में संशोधन प्रस्तावित करता है।
प्रवेशन लैंगिक हमला
● अधिनियम, 2012 के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति ‘प्रवेशन लैंगिक हमला’ करता है, तो इस अपराध के लिये दोषी व्यक्ति को 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तथा जुर्माना भी देना होगा।
● किन्तु संशोधन अधिनियम 2019 में सजा की न्यूनतम अवधि 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गयी है।
● यदि कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम आयु के बालक पर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है, तो उसके लिये जुर्माने के साथ 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।
गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला
● अधिनियम 2012 के अर्न्तगत कुछ कृत्यों को गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमले के रूप में परिभाषित किया गया है।
● इसमें ऐसे मामले आते हैं, जिनमें एक पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बलों का कोई सदस्य अथवा एक लोक सेवक एक बच्चे पर गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला करता है।
● इसमें ऐसे मामले भी शामिल है, जिसमें अपराधी बच्चे का रिश्तेदार है अथवा हमले मे बच्चे के यौनांगों को हानि पहुंचती है अथवा बच्ची गर्भवती हो जाती है।
● संशोधन अधिनियम के अन्तर्गत गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमले की परिभाषा में दो और आधारों को शामिल किया गया है।
(i) हमले के कारण बच्चे की मृत्यु ।
(ii) प्राकृतिक आपदा अथवा हिंसा की किसी भी असमान्य परिस्थितियों में किया गया हमला।
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006
● इस अधिनियम का नाम ‘बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006’ है।
● यह अधिनियम भारत के बाहर रह रहे सभी भारतीय नागरिकों पर भी लागू (प्रवृत्त) है।
● यह अधिनियम 1 नवम्बर 2007 को लागू (प्रवृत्त) किया गया।
● इस अधिनियम का उद्देश्य बाल विवाह का प्रतिषेध और उससे जुड़े आकस्मिक मामलों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना है।
धारा 2 – अधिनियम के अंतर्गत महत्वपूर्ण परिभाषाएँ
बाल विवाह – ऐसा विवाह जिसमें कोई लड़का या लड़की या दोनों बालक हो।
धारा 3 :- यदि कोई बाल विवाह चाहे अधिनियम से पूर्व या अधिनियम के पश्चात हुआ हो, वह पक्षकारों के विकल्प पर शून्यकरणीय होगा, ऐसा पक्षकार जो विवाह के समय बालक था।
● यदि याचिका दाखिल के समय याचक बालक है, तो याचिका उसके संरक्षक, न्याय मित्र तथा बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी द्वारा दाखिल की जा सकती है।
● याचिका किसी भी समय लेकिन याचिका दाखिल करने वाले बालक या बालिका के वयस्कता प्राप्त करने के 2 वर्ष पहले दाखिल की जा सकती है।
धारा-4 बाल विवाह की महिला पक्षकार के भरण-पोषण और निवास की व्यवस्था की जायेगी।
● भरण पोषण की दान राशि मासिक अथवा एक-साथ भुगतान किए जाने का निर्देश किया जा सकता है।
धारा-5 बाल विवाह के उपरान्त पैदा हुई सन्तानों की अभिरक्षा के लिये जिला न्यायालय समुचित आदेश पारित कर सकता है।
धारा-6 बाल विवाह के शून्य घोषित होने के पश्चात भी संतान की धर्मजता प्रभावित नहीं होगी। ऐसी संतान को धर्मज संतान ही माना जाता है।
● इस अधिनियम के अनुसार, एक आपत्ति देने के समय, जिला अदालत दोनों पक्षों और उनके माता-पिता को धन, गहने, उपहार तथा अन्य मूल्यवान वस्तुओं को वापस लौटाने का आदेश देगा।
धारा 9 :- बालक का विवाह करने वाले पुरुष वयस्क के लिये सजा
● यदि कोई 18 वर्ष से ऊपर की आयु का व्यस्क व्यक्ति बाल विवाह करता है तो उसे 2 वर्ष का कारावास या 1 लाख रूपये जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जायेगा ।
धारा 10 :- यदि कोई व्यक्ति बाल विवाह को संपन्न, संचालित निर्देश अथवा करने के लिये दुष्प्रेरित करता है तो उसे 2 वर्ष का कठोर कारावास तथा 100000 रुपये के जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।
धारा 11 :- यदि बच्चे के माता-पिता या अभिभावक अथवा संरक्षक अथवा विधि विरुद्ध अथवा वैध व्यक्तियों के किसी संगठन का सदस्य बाल विवाह में सम्मिलित होकर प्रेरित करता है तथा अनुष्ठान की अनुमति देता तो उसे 2 वर्ष का कठोर कारावास एवं 100000 रूपये के जुर्माने से दंडित किया जायेगा।
धारा 12 :- निम्न स्थितियों में विवाह शुरू से ही शून्य होगा।
(i) यदि बालक अवयस्क है तथा विधिपूर्ण संरक्षकता से ले जाया जाता है।
(ii) यदि किसी स्थान से बालक को बलपूर्वक ले जाया जाता है।
(iii) किसी बालक का विवाह करने के लिये उसका विक्रय (बेचा) किया जाता है।
धारा 13 :- यदि प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट अथवा महानगर मजिस्ट्रेट को बाल-विवाह, प्रतिषेध अधिकारी के आवेदन पत्र पर अथवा किसी व्यक्ति के परिवाद अथवा सूचना के द्वारा यह पता चलता है, कि अधिनियम का उल्लंघन किया गया है, तो न्यायालय आदेश जारी कर उस बाल विवाह को रोक देगा।
धारा 15 :- इस अधिनियम के अन्तर्गत दंडनीय अपराध संज्ञेय और अजमानतीय होगा।
धारा 16 :- राज्य सरकार, राज्य के सभी भागों मे ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति करेगी, जिसे बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी के रूप मे जाना जायेगा।
● बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी के निम्न कर्तव्य होगें-
(i) बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी करें, जैसा वह उचित समझे और बाल विवाह प्रयोजनों का निवारण करे।
(ii) प्रभावी अभियोजन के लिये प्रमाणों को इकट्ठा करे।
(iii) बाल विवाह के बिंदु पर समुदाय को जागरूक करे
धारा 18 :- के अधीन सद्भावना में की गई कार्यवाही को संरक्षण प्राप्त किया जायेगा।
धारा 19:- के अन्तर्गत राज्य सरकार को नियमावली बनाने की शक्तियां प्राप्त हैं।

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