प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) से संबंधित सभी प्रश्न जो की प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं वे सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लाभकारी होगा जैसे UPSC, UPPSC, MPPCS, UKPCS,BPSC,UPPCS,UP POLICE CONSTABLE, UPSI,DELHI POLICE, MP POLICE, BIHAR POLICE, SSC, RAILWAY, BANK, POLICE,RAILWAY NTPC,RAILWAY RPF,RAILWAY GROUP D,RAILWAY JE,RAILWAY TECNICIAN, Teaching Bharti अन्य सभी परीक्षाओं के लिए उपयोगी
■ प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau)———–>
● प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला भू-भाग है, जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से निर्मित है। प्रायद्वीपीय भूखण्ड जो प्राचीन गोंडवानालैण्ड का अंग है, आर्कियन से लेकर ऊपरी कार्बोनीफेरस युग तक की जटिल शैलों से निर्मित है। इसके मध्य धारवाड़ स्थलाकृति चक्र में प्रारंभिक पर्वतों का निर्माण हुआ।
● अतः प्रायद्वीपीय पर्वतों का निर्माण पैल्योजोइक कल्प से सम्बंधित है। यह गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था। यही कारण है कि, यह प्राचीनतम भू-भाग का एक हिस्सा है।
● दक्षिण भारत का पठार या प्रायद्वीपीय पठार आकृति की दृष्टि में अनियमित त्रिभुजाकार है। यह उत्तर की ओर चौड़ा और दक्षिण में संकीर्ण है। इसकी औसत ऊँचाई 600 से 900 मीटर है।
● प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पूर्व और पश्चिम में कई पहाड़ियों है, इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई 500 से 750 मीटर तक है। इस पठार की उत्तरी सीमा पर अरावली, विंध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियों स्थित हैं।
● इसका उत्तर में दक्षिण विस्तार 1600 किमी तथा पूर्व पश्चिम विस्तार 1400 किलोमीटर से अधिक है।
■ अरावली श्रेणियाँ (Aravalli Ranges)———–>
● अरावली की पहाड़ियाँ प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी एवं उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर स्थित हैं, जो बहुत अधिक अपरदित एवं खंडित पहाड़ियाँ हैं।
● अरावली की पहाड़ियाँ दक्षिण-पश्चिम में पालनपुर (गुजरात) से लेकर उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक लगभग 800 किमी. की लंबाई में विस्तृत हैं। दिल्ली के निकट इसे दिल्ली की पहाड़ियाँ कहते हैं। अरावली की औसत ऊँचाई 300-920 मीटर तक है किन्तु दक्षिण-पश्चिम में आबू के निकट इनकी सबसे ऊँची चोटी गुरूशिखर 1,722 मीटर ऊँची है।
● इस श्रेणी का निर्माण 600 से 570 मिलियन वर्ष पूर्व प्री-कैम्ब्रियन काल में हुआ था। यह विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। अरावली के पश्चिम की ओर माही एवं लूनी नदियाँ निकलती हैं। लूनी नदी कच्छ के रण में लुप्त हो जाती है।
● ऐसी नदियाँ जो शुष्क या अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पायी जाती है तथा वर्षा पर निर्भर होता है और इनका प्रवाह बहुत कम समय के लिए होता है। यह धरातल पर ही लुप्त हो जाती है, अल्पकालिक नदी (Ephemeral River) कहलाती है। |
■ विंध्याचल श्रेणी (Vindhychal Ranges)————>
● यह श्रेणी नर्मदा-सोन भ्रंश के उत्तर में उसके समानांतर पश्चिम से पूर्व की ओर विस्तृत है।
● यह अत्यधिक पुरानी व घर्षित मोड़दार पर्वत श्रेणी है। यह मालवा पठार के उत्तर (झारखण्ड, उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़) में विस्तृत है। यह उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करती है। इसकी औसत ऊँचाई 450 से 600 मी. है। यह पश्चिम से पूर्व की ओर भारनेर, कैमूर और पारसनाथ पहाड़ियों के रूप में झारखण्ड तक लगभग 1,200 किमी. की लम्बाई में विस्तृत है।
■ सतपुड़ा श्रेणी (Satpura Ranges)————->
● सतपुड़ा श्रेणी दक्कन पठार का ही भाग है, जो ब्लॉक पर्वत काउदाहरण है इसके दोनों ओर नर्मदा और ताप्ती की भू-भ्रंश घाटियाँ हैं। संरचनात्मक दृष्टि से सतपुड़ा को तीन भागों में बाँटा जाता है, पश्चिमी से राजपिपला की पहाडियाँ, मध्य में महादेव पर्वत तथा पूर्व में मैकाल पर्वत। धूपगढ़ (1,350 मी.) सतपुड़ा श्रेणी की सर्वोच्च चोटी है जो पचमढ़ी पहाड़ी पर स्थित है।
■ ब्लॉक पर्वत या हॉर्स्ट (Block Mountain or Horst)———->
● वह पर्वत जिसका निर्माण भ्रंशों के बीच स्थल के उत्थान (ऊपर उठने) अथवा भ्रंशों के बाहर भूमि के निमज्जन (नीचे धंसने) द्वारा होता है अर्थात दो समानांतर भ्रंशों के बीच भूखण्ड के ऊपर उठ जाने से अथवा दो समानांतर भ्रंशों के बाहरी भूखण्डों के नीचे धंस जाने से निर्मित उच्च भूमि या पर्वत को ब्लॉक पर्वत या हॉर्स्ट कहते हैं। इस पर्वत के बीच स्थित निम्न भूमि को ग्राबेन (Graben) कहते हैं। ● इसका आकार मेज के समान होता है। जिसका ऊपरी भाग सपाट तथा किनारे तीव्र ढाल वाले होते हैं। ऐसे पर्वतों की उत्पत्ति भ्रंशों के कारण होती है। अतः इन्हें भ्रंशोत्थ पर्वत भी कहा जाता है। जर्मन भाषा में इसे हॉर्स्ट कहते हैं। ● विंध्याचल और सतपुड़ा श्रेणियों के मध्य नर्मदा घाटी स्थित है। इस घाटी में नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में जल विसर्जित करती है। विंध्याचल और सतपुड़ा श्रेणियों के बीच भूभाग के नीचे की ओर धँसने से इस घाटी का निर्माण हुआ है। |
● मैकाल पठार छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है। मैकाल पहाड़ी का सर्वोच्च शिखर अमरकंटक (1064 मी.) है जो पुरानी शैलों से निर्मित एक ब्लॉक पर्वत है। अमरकंटक कई नदियों का उद्गम स्थल है। अमरकंटक पर्वत के पश्चिम की ओर से नर्मदा नदी, उत्तर की ओर से सोन नदी और दक्षिणी की ओर से महानदी निकलती है।
● नर्मदा नदी सम्पूर्ण पठारी क्षेत्र को दो भागों में बाँटती है। नर्मदा और तापी दोनों नदियों ने संकीर्ण कछारी मैदान का निर्माण किया है। ये दोनों नदियाँ भ्रंश घाटी से होकर बहती हैं। |
● इस पठार के पूर्व में पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ अत्यधिक कट्टी-छँटी हैं। सोन, चम्बल, और दामोदर नदियों की दिशा से स्पष्ट है कि, प्रायद्वीपीय पठार का ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है दक्षिण भाग में इसका ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है जो महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी की दिशा से स्पष्ट है।
● यहाँ की पहाड़ियों को काट कर महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियाँ बहती हैं और उपजाऊ मैदान का निर्माण करती हैं। इस पठारी भाग में अनेक चौड़ी तथा छिछली घाटियाँ एवं गुम्बदाकार पहाड़ियाँ हैं, जिसके दो मुख्य भाग हैं-
1. मध्य उच्चभूमि (Middle Highland)
2. दक्कन का पठार (Deccan Plateau)
■ मध्य उच्चभूमि (Middle Highland)———->
● नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग है, जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है, मध्य उच्च भूमि के नाम से जाना जाता है।
● मध्य उच्च भूमि का अधिकांश भाग मालवा का पठार कहलाता है। यह पठारी भाग पूर्व में महादेव श्रृंखला और उत्तर-पश्चिम में अरावली और मध्य में विंध्य श्रृंखला से घिरा हुआ है। इसके पश्चिम में राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र विस्तृत है।
● यहाँ बहने वाली नदियों में चंबल, सिन्धु, बेतवा तथा केन हैं, जो दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की और प्रवाहित होती हैं और इस प्रकार ये इस क्षेत्र के ढाल को दर्शाती हैं। इसका ढाल दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर है। यह भाग पश्चिम में चौड़ा और पूर्व में संकीर्ण है।
● इसके पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुन्देलखण्ड तथा बघेलखण्ड के नाम से जाना जाता है। मध्य उच्च भूमि का सुदूर पूर्व का विस्तार मुख्यतः दामोदर और स्वर्णरखा नदियों द्वारा अपवाहित है, जिसे छोटानागपुर का पठार कहा जाता है। इसका विस्तार बिहार राज्य के गया जिले की दक्षिणी सीमा तक है।
● विन्ध्याचल के दक्षिण में इन्हीं के समानांतर सतपुड़ा पर्वत तथा पूर्व में अमरकंटक और छोटानागपुर का पठार है।
● छोटानागपुर के पठार में बहने वाली दामोदर नदी की घाटी में प्रसिद्ध कोयला पट्टी है। इस क्षेत्र में कोयले के अतिरिक्त अन्य खनिज पदार्थ भी पाये जाते हैं। छोटानागपुर पठार क्षेत्र में पाये जाने वाले पाट प्रदेश अभ्रक और बॉक्साइट के निक्षेप हैं। |
● दण्डकारण्य क्षेत्र दक्षिण भारत के प्रायद्वीपीय पठार का एक भाग है, जिसका विस्तार ओडिशा (कोरापूट और कालाहांडी जिला), छत्तीसगढ़ (बस्तर जिला) तथा आंध्र प्रदेश (पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम् और श्रीकाकुलम् जिलों में) में लगभग 89,078 वर्ग किमी. क्षेत्र पर है।
■ दक्कन का पठार (Deccan Plateau)———>
● प्रायद्वीपीय भारत की चट्टानों की उत्पत्ति लगभग 3,000 मिलियन वर्ष पूर्व हुई थी। काबोंनीफेरस युग के पहले यह गोंडवानालैण्ड का एक भाग था। कार्बोनीफेरस युग में दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी बेसिन में कोयले का निर्माण हुआ। क्रिटैशियस युग के दौरान अत्यधिक ज्वालामुखी उद्गार से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। इसी काल में दक्कन के पठार पर बेसाल्ट निर्मित लावा शैलों (आग्नेय शैलों) का निर्माण हुआ।
● इन आग्नेय शैलों का समय के साथ अपरदन हुआ है, जिससे काली मृदा का निर्माण हुआ।
● दक्कन के पठार के अन्तर्गत महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग, पश्चिमी आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य के अधिकतर भाग आते हैं, यहाँ लावा की अधिकतम अनुमानित गहराई 2,134 मीटर है। किन्तु पूर्व और उत्तर की ओर गहराई अपेक्षाकृत कम है।
● इसके पश्चिमी हिस्से में सह्याद्री की पहाड़ी है। महाबलेश्वर (1438मी.) सह्याद्रि की प्रमुख चोटी है, जहाँ से कृष्णा नदी निकलती है। इस पठार के पूर्वी भाग को विदर्भ कहा जाता है।
● धारवाड़ का पठार कर्नाटक राज्य में स्थित है, जो रूपांतरित शैलों से बना है। इस पठार के पश्चिमी भाग में बाबा बुदान की पहाड़ियाँ तथा ब्रह्मगिरि की पहाड़ियाँ स्थित हैं।
● दक्षिण के पठार या प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे पर क्रमशः पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट स्थित हैं।
■ पूर्वी घाट (Eastern Ghats)————>
● पूर्वी घाट की औसत ऊँचाई 900-1100 मीटर है। जिसका विस्तार पूर्वी समुद्र तटीय मैदान के समानान्तर महानदी घाटी से दक्षिण में नीलगिरि तक दक्षिण-पूर्वी दिशा में 1,800 किमी. की लम्बाई में है, जो सतत् नहीं है, बल्कि ये अनियमित हैं, क्योंकि महानदी, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी आदि नदियों ने इसे जगह-जगह पर अपरदित किया है। बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ इसे विभाजित करती हैं।
● यह पश्चिमी घाट से बिल्कुल भिन्न है। यह अधिक कटा-छँटा तथा पहाड़ियों के रूप में है। ओडिशा में महेन्द्रगिरि, आन्ध्रप्रदेश में नल्लामल्ला, पालकोंडा, वेलीकोडा नगारी तथा तमिलनाडु में पंचमलाई, शेवराय, जवादी, पालनी तथा वेलंगिरी पूर्वीघाट की प्रमुख पहाड़ियाँ हैं। ये पहाड़ियाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों द्वारा अलग की गई हैं। ये नदियाँ उपजाऊ मैदान तथा डेल्टा का निर्माण करती हैं।
● समुद्र तल से 400-500 फीट ऊँचे पठार के पास शेवराय पहाड़ियाँ तमिलनाडु के सलेम कस्बे के समीप अवस्थित हैं। जो लगभग 50 वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर विस्तृत पूर्वी घाट का हिस्सा हैं। तमिलनाडु का प्रसिद्ध हिल स्टेशन यारकॉड (Yercaud) इन्हीं पहाड़ियों पर स्थित है।
● पूर्वी घाट प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी भाग में फैला है। इन्हें पूर्वादि श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है। यह श्रेणी तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर स्थित नीलगिरि में सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) से मिल जाती है।
● पूर्वी घाट प्राचीन मोड़दार वलित पर्वत का अवशिष्ट रूप है। इसका सर्वोच्च शिखर विशाखपत्तनम् चोटी (1,680 मी.) है एवं महेन्द्रगिरि (1,501 मी.) दूसरी सर्वोच्च चोटी है।
● सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) और पूर्वाद्रि (पूर्वी घाट) के बीच पठारी भाग को कई स्थानीय नामों से जाना जाता है। तेलंगाना का पठार, प्रायद्वीपीय पठार का ही एक भाग है।
● प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पूर्वी भाग को बघेलखण्ड और छोटानागपुर पठार के नाम से जाना जाता है।
● प्रायद्वीपीय पठार का एक भाग उत्तर-पूर्व में भी पाया जाता है, जिसे मेघालय का पठार, कार्बी आंगलांग पठार तथा उत्तर कचार पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्वपूर्ण श्रृंखलाएँ गारो, खासी तथा जयंतिया विस्तृत हैं।
● मेघालय का पठार प्रायद्वीपीय पठार का ही विस्तार है, जो भ्रंशन के कारण प्रायद्वीपीय भाग से माल्दा गैप द्वारा पृथक हो गया है।
● मालवा का पठार मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है, जो ज्वालामुखी शैलों से निर्मित है। इसकी उत्तरी सीमा अरावली, दक्षिणी सीमा विंध्यन श्रेणी और पूर्वी सीमा बुन्देलखण्ड पठार द्वारा निर्धारित की जाती है।
■ पश्चिमी घाट (Western Ghats)————>
● पूर्वी घाट की 600 मीटर की औसत ऊँचाई की तुलना में पश्चिमी घाट की ऊँचाई 1000 से 1,300 मीटर है।
● पश्चिमी घाट पर्वत, उत्तर में तापी (ताप्ती) नदी के बाएँ तट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में कन्याकुमारी अन्तरीप तक 1,600 किमी. की लम्बाई में विस्तृत है। यहाँ चार प्रमुख दरें उत्तर से दक्षिण में क्रमशः थालघाट, भोरघाट, पालघाट और सेनकोट्टा हैं।
● यह वास्तविक पर्वत श्रेणी नहीं है, बल्कि प्रायद्वीपीय पठार का ही एक भ्रंश कगार (Fault Scarp) है। |
● पश्चिमी घाट में पर्वतीय वर्षा होती है। यह वर्षा पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल पर आर्द्र हवा से टकराकर ऊपर उठने के कारण होती है। पश्चिमी घाट को विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है, जिसकी ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है।
● दक्षिण की ओर पश्चिमी घाट पर्वत नीलगिरि की पहाड़ियों द्वारा पूर्वी घाट से मिल जाता है। दक्षिण भारत की सर्वोच्च चोटी अन्नाइमुडी (2,695 मी.) है जो अन्नामलाई की पहाड़ियों में स्थित है।
● पश्चिमी घाट को महाराष्ट्र, गोवा एवं कर्नाटक में सह्याद्रि के नाम से भी जाना जाता है इसकी औसत ऊँचाई 1,200 मी. है। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है- उत्तरी सह्याद्रि तथा दक्षिणी सह्याद्रि। 16° उत्तरी अक्षांश उत्तरी सह्याद्रि तथा दक्षिणी सह्याद्रि को विभाजित करती है, जो गोवा से होकर गुजरती है।
● उत्तरी सह्याद्रि की ऊपरी सतह पर लावा के निक्षेप पाये जाते हैं जबकि दक्षिणी सह्याद्रि मुख्यतः आर्कियन शैलों से निर्मित है। उत्तरी सह्याद्रि का सर्वोच्च शिखर कल्सुबई (1,646 मी.) है जबकि दक्षिणी सह्याद्रि का सर्वोच्च शिखर कुद्रेमुख ( 1,892 मी.) है। दक्षिणी सह्याद्रि का दूसरा सर्वोच्च शिखर पुष्पगिरि (1714 मी.) है। पुष्पगिरि के समीप से ही कावेरी नदी निकलती है।
● डोडाबेट्टा (2,637 मी.) दक्षिण भारत की दूसरी सर्वोच्च चोटी है। नीलगिरि पर्वत श्रेणी कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु राज्यों के मिलन बिन्दु पर स्थित है।
● इलायची पहाड़ियाँ दक्षिण भारत में दक्षिणी-पश्चिमी घाट में केरल के दक्षिणी-पूर्वी हिस्से तथा तमिलनाडु के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में अन्नामलाई पर्वत के दक्षिण में अवस्थित हैं। इसके उत्तर-पश्चिम में अन्नामलाई, उत्तर-पूर्व में पालनी पहाड़ी तथा दक्षिण में अगस्त्यामलाई पहाड़ी स्थित है।
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