UPSI 2025 Moolvidhi & Sanvidhan | PDF

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पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986

● भारत में पर्यावरण सुरक्षा एवं पर्यावरण में सुधार करने हेतु भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 लाया गया। इस अधिनियम को संसद द्वारा 23 मई, 1986 को पारित किया गया और यह अधिनियम 19 नवंबर, 1986 को लागू किया गया। इस अधिनियम में चार अध्याय तथा 26 धाराएं वर्णित है। इस अधिनियम को पारित करने का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गये प्रयासों को भारत में विधि बनाकर लागू करना था।

● इस अधिनियम का निर्माण जून, 1972 में स्टॉकहोम में हुए मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन तथा वर्ष 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के परिप्रेक्ष्य में किया गया था।

○ पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम, 1986 की धाराएं निम्नलिखित हैं।

धारा 1 :- इसमें संक्षिप्त नाम, विस्तार क्षेत्र एवं प्रारम्भतिथि के विषय में चर्चा की गई है।

धारा 2 :- यह धारा अधिनियम की उप-धाराओं में परिभाषित शब्दों के विषय में है।

धारा 2 (क) :- इसमें पर्यावरण को परिभाषित किया गया है तथा साथ ही जल, वायु और भूमि और मानव, जीवित प्राणियों, पादपों तथा सूक्ष्मजीवों के मध्य अन्तर्संबंधों की चर्चा की गई है।

धारा 2 (ख) :- इसके अनुसार, ‘पर्यावरण प्रदूषक’ एक ऐसा ठोस, द्रव या गैसीय पदार्थ होता है जो पर्यावरण में ऐसी सांद्रता में विद्यमान होता है जिसके चलते पर्यावरण को क्षति हो सकती है।

धारा 2 (ग) :- इसके अनुसार ‘पर्यावरण’ प्रदूषण का तात्पर्य, पर्यावरण में विद्यमान पर्यावरण प्रदूषकों से है।

धारा 2 (ङ) :- इसमें परिसंकटमय पदार्थों के विषय में वर्णन किया गया है। परिसंकटमय पदार्थ, वे पदार्थ होते हैं, जो रासायनिक या भौतिक-रासायनिक गुणों के प्रभाव से मानव-जाति, प्राणियों, संपत्ति, पर्यावरण तथा सूक्ष्मजीवों को हानि पहुँचा सकते हैं।

धारा 3 :- इस धारा में प्रावधान है कि केन्द्र सरकार इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, पर्यावरण संरक्षण, नियंत्रण, उपशमन तथा इसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक कार्यवाही कर सकती है।

धारा 3 (3) :- इसके अन्तर्गत केन्द्र सरकार अधिनियम के प्रयोजनों के लिए विभिन्न प्राधिकरणों की स्थापना कर सकती है।

धारा 4 :- इसमें अधिनियम के प्रयोजनों के लिए संबंधित अधिकारियों की नियुक्ति, शक्तियों तथा उनके कृत्यों के संबंध में उपबंध किये गए हैं।

धारा 5 :- इस धारा में अधिकारियों, प्राधिकरणों तथा व्यक्तियों को केन्द्र सरकार द्वारा निदेश देने की शक्ति का वर्णन किया गया है।

धारा 6 :- इसके अनुसार, केंद्र सरकार पर्यावरण प्रदूषण के विनियमन हेतु अधिनियम के उपबंधो के अधीन नियम बना सकती है।

धारा 7 :- इसमें प्रावधान है कि कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी उद्योग को चलाता है या कोई औद्योगिक संक्रिया करता है तो उसे निर्धारित मानकों से अधिक पर्यावरण प्रदूषक उत्सर्जित करने की अनुमति नहीं होगी।

धारा 8 :- इस धारा के अनुसार, कोई भी व्यक्ति निर्धारित प्रक्रिया का अनुपालन न करते हुए या निर्धारित सुरक्षा उपायों का पालन किये बिना, किसी भी परिसंकटमय पदार्थ को नहीं रखेगा।

धारा 9 :- इसके अनुसार किसी घटना, दुर्घटना अथवा आकस्मिक कृत्य के कारण प्रदूषण उत्सर्जन होने पर इसकी सूचना निर्धारित व्यक्ति, प्राधिकरणों ओर अधिकरणों को शीघ्र ही देगा तथा साथ ही सभी प्रकार की सहायता भी देगा।

धारा 10 :- यह धारा केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को किसी स्थान में प्रवेश करने तथा निरीक्षण की शक्ति प्रदान करने का प्रावधान करती है।

धारा 11 :- यह धारा केन्द्र सरकार या उसके द्वारा नियुक्त किसी अधिकारी को किसी कारखाने या अन्य स्थान से जल वायु, मिट्टी या अन्य किसी पदार्थ के नमूनें लेने की शक्ति प्रदान करती है।

धारा 12 :- इसके अनुसार केन्द्र सरकार को पर्यावरणीय प्रयोगशालाएँ स्थापित करने का अधिकार दिया गया है।

धारा 13 :- इसमें प्रावधान है कि पर्यावरण प्रयोगशाला को विश्लेषण के लिए भेजे गए वायु, जल, मृदा या अन्य पदार्थ के नमूनों के विश्लेषण के प्रयोजनों के लिए सरकारी विश्लेषक नियुक्त किये जायेगें।

धारा 14 :- इसके अनुसार सरकारी विश्लेषकों की रिपोर्ट, अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही साक्ष्य के रूप में प्रयोग की जा सकती है।

धारा 15 :- इसमें अधिनियम में वर्णित नियमों, आदेशों तथा निर्देशों के उल्लंघन करने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है। इसमें दण्ड के रूप में पाँच वर्ष तक का कारावास या एक लाख रूपये का जुर्माना या दोनों दिया जा सकता है। यदि उल्लंघन जारी रहा, तो प्रतिदिन 5000 रूपये का जुर्माना देना होगा। प्रथम दोष सिद्धि के पश्चात् यदि एक वर्ष की अवधि से आगे भी उल्लंघन जारी रहा, तो सात वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है।

धारा 16 :- इसमें किसी कंपनी द्वारा अधिनियम के तहत कोई अपराध करने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है।

धारा 17 :- इसमें किसी सरकारी विभाग द्वारा अधिनियम के तहत कोई अपराध किये जाने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है।

धारा 18 :- इस धारा में सद्भावनापूर्वक की गई कार्यवाही के लिए संरक्षण दिये जाने का प्रावधान है।

धारा 19 :- कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के तहत किसी अपराध का संज्ञान नही लेगा बशर्ते शिकायत निम्न में से किसी के द्वारा न की गई हो-

A. केंद्र सरकार या उसकी ओर से कोई प्राधिकरण द्वारा

B. कोई ऐसा व्यक्ति, जो केंद्र सरकार या उसके प्राधिकरण को 60 दिनों का नोटिस सौंपने के पश्चात न्यायालय के समक्ष आया हो।

धारा 20 :- इसके अनुसार प्राधिकरण के सदस्य, अधिकारी तथा प्राधिकारी सभी रिपोर्ट, विवरणियाँ, आँकड़े, लेखे आदि की जानकारी देने के लिए बाध्य होंगे।

धारा 21 :- इसमे प्रावधान है कि इसी अधिनियम की धारा -3 के अन्तर्गत गठित प्राधिकरण के सदस्य अधिकारी एवं कर्मचारी भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 21 के तहत लोक सेवक होंगे।

धारा 22 :- इसके अनुसार सिविल न्यायालय को केन्द्र सरकार या उसके किसी प्राधिकरण के निर्देशों के संबंध में कोई कार्यवाही करने की अधिकारिता नहीं होगी।

धारा 23 :- इसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर केन्द्र सरकार अपनी शक्तियाँ किसी अधिकारी, प्राधिकारी या राज्य सरकार को सौंप सकती है।

धारा 24 :- इस धारा में इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों या निर्गत आदेशों पर अन्य विधियों के प्रभाव के विषय में बताया गया है।

धारा 25 :- यह धारा केन्द्र सरकार को इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है।

धारा 26 :- इसके अनुसार अधिनियम के तहत बने नियम यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखे जाएगें।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की कमियाँ

● इस अधिनियम का एक दोष इसका केन्द्रीकरण होना है।

● इस अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्र सरकार को अनेक शक्तियाँ प्राप्त है, इसके विपरीत राज्य सरकारों को कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।

● इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रदूषण से संबंधित आधुनिक अवधारणाओं जैसे-विकिरण तरंगों, परिवहन प्रणाली (अधिक बोझ ढोने वाली), शोर तथा अन्य प्रदूषण के कारकों को सम्मिलित नहीं किया गया है।

● अधिनियम में पर्यावरण सरंक्षण हेतु सार्वजनिक भागीदारी के विषय में भी कोई चर्चा नही है।

भारत में पर्यावरण सरंक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधान

● पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-253 के अन्तर्गत अधिनियमित किया गया। गौरतलब है कि संविधान का अनुच्छेद-253 अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को प्रभावी करने के लिए कानून बनाने का प्रावधान करता है।

● भारतीय संविधान के अनुच्छेद – 48A में प्रावधान है कि राज्य, पर्यावरण की रक्षा एवं इसमें सुधार करने तथा देश के वनों और वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।

● संविधान में वर्णित अनुच्छेद-51A (g) के अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह पर्यावरण की रक्षा एवं इसका संवर्धन करें।

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पिछले 2 व अधिक सालों से जीवित, सजीव, बेबाक और ठोस लेखनी की छाप छोड़ते आये इंजीनियर उमेश यादव, जिला फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश के रहने वाले है। आगरा विश्वविघालय से B.A और UPBTE से पॉलीटेक्निक डिप्लोमा (ME) और UPBTE से B.Tech (ME)करने के बाद आजकल फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश मे रहते हुए स्वतंत्र लेखन कार्य के प्रति प्रतिबद्ध व समर्पित है। सरकारी नौकरी, प्राईवेट नौकरी, के सभी विषय बार + Chepter Wise Study material सहित अन्य सभी विषयों पर गंभीर, जुझारू और आलोचनात्मक / समीक्षात्मक लेखनी के लिए इंजीनियर उमेश यादव कई बार विवादों का शिकार होते हुए निडरतापूर्वक लेखन करने के लिए जाने जाते है।

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