UP Police Sub Inspector UPSI Mool Vidhi: मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993

UP Police Sub Inspector UPSI Mool Vidhi: मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 UPSI 2025 और कांस्टेबल पिछले साल के प्रश्न पत्र पीडीएफ प्रारूप में डाउनलोड करने के लिए यहां उपलब्ध हैं। यूपी पुलिस विभाग कांस्टेबल, प्लाटून ऑफिसर, सब इंस्पेक्टर आदि जैसे विभाग में विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिए भर्ती अभियान चलाता है।

यूपी पुलिस भर्ती चार चरणों में की जाती है- लिखित परीक्षा, शारीरिक दक्षता परीक्षा, शारीरिक मानक परीक्षण, मेडिकल टेस्ट।

UP Police Sub Inspector UPSI Mool Vidhi: मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993

● मानव अधिकार की संकल्पना अत्यन्त प्राचीन है। ग्रीक (यूनानी) राज्यों द्वारा सबसे पहले मानव अधिकारों को मान्यता दी गई थी।

● प्रत्येक मनुष्य को जन्म के साथ कुछ नैसर्गिक अधिकार प्राप्त होते हैं, जिनसे किसी भी परिस्थिति में उसे वंचित नहीं किया जा सकता है। मानवीय गरिमा के साथ जीने और अपना विकास करने के लिये आवश्यक इन अधिकारों को मानवाधिकार की संज्ञा दी जाती है।

● मानव अधिकारों का जन्मदाता वर्ष 1215 में प्रकाशित ब्रिटेन का महान घोषणा पत्र (मैग्नाकार्टा) को कहा जाता है।

● यूरोप में मानवाधिकारों तथा नागरिक स्वतंत्रता का सबसे पहला दस्तावेज वर्ष 1525 में प्रकाशित ‘द ट्वेल्व आर्टिकल’ के नाम से जाना जाता है।

● संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की गई थी जिसे ‘विश्व मानवाधिकार दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

● संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 20 दिसम्बर 1993 को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की स्थापना हुई।

● संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 15 मार्च 2006 को ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ की स्थापना जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में की गई थी।

● भारत में 1993 में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम पारित हुआ, जिसे 28 सितम्बर 1993 को लागू किया गया।

● भारतीय संविधान में मानव अधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में सम्मिलित किया गया है।

● संविधान में मूल रूप से 7 मौलिक अधिकार थे, किन्तु 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों से सम्पत्ति के अधिकार को पृथक कर दिया गया।

● इस अधिनियम में 8 अध्याय और 43 धाराएं है।

कुछ महत्त्वपूर्ण धाराएं-

धारा (1) :- संक्षिप्त नाम, विस्तार एवं प्रारम्भ

(क) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 है।

(ख) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।

(ग) यह 28 सितम्बर 1993 को लागू किया गया था।

धारा 2 :- परिभाषाएँ

धारा 3 :- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन केन्द्र सरकार द्वारा, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 12 अक्टूबर 1993 को किया गया।

आयोग निम्नलिखित से मिलकर बनेगा :-

● एक अध्यक्ष, जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश रहा है।

● एक सदस्य, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हैं अथवा रहा है।

● एक सदस्य, जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश है अथवा रहा हो।

● दो सदस्य, जो ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किए जायेंगे जिन्हें मानव अधिकारों का ज्ञान और अनुभव होगा।

● राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष सभी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पदेन सदस्य होते हैं।

● आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली होगा, केन्द्र सरकार चाहे तो कहीं भी कार्यालय स्थापित कर सकती है।

धारा 4 :- अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति

राष्ट्रपति के द्वारा उस समिति की सिफारिशों पर की जाती है, जिसमें होते हैं-

● प्रधानमंत्री – अध्यक्ष

● लोकसभा का अध्यक्ष – सदस्य

● भारत सरकार के गृह मंत्रालय का भारसाधक मंत्री सदस्य

● लोक सभा में विपक्ष का नेता – सदस्य

● राज्यसभा में विपक्ष का नेता – सदस्य

● राज्यसभा का उपसभापति – सदस्य

● परन्तु यह उच्चतम न्यायालय का कोई आसीन न्यायाधीश अथवा किसी उच्च न्यायालय का कोई आसीन मुख्य न्यायमूर्ति भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के बाद ही नियुक्त किया जायेगा, अन्यथा नहीं।

धारा 5 :- अध्यक्ष और सदस्यों का त्याग पत्र व उनको हटाया जाना

● इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है, परन्तु हटाने से पूर्व वह उच्चतम न्यायालय से जांच करायेगा ।

धारा 6 :- अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि

● अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक, इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा।

● अध्यक्ष एवं सदस्य सेवानिवृत्त होने के पश्चात भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर नियुक्ति के लिये पात्र नहीं होंगे।

नोट :- मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019 के अनुसार राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के कार्यकाल की अवधि को 5 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष कर दिया गया है।

धारा 12 :- आयोग के कार्य एवं शक्तियाँ

● यह धारा आयोग के कार्यों से सम्बन्धित है। आयोग स्वप्रेरणा से या पीड़ित व्यक्ति द्वारा या अन्य व्यक्ति द्वारा भेजी गई शिकायतों के बाद जहाँ कहीं भी मानव अधिकारों का हनन हो रहा है, उसके लिये उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों पर कार्य करेगा।

धारा 13 :- जांच से सम्बन्धित शक्तियाँ

● आयोग को इस अधिनियम के तहत शिकायतों के बारे में जाँच करते समय एवं विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में वे सभी शक्तियाँ प्राप्त होगी, जो सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अधीन किसी वाद का विचार करते समय सिविल न्यायालय को है, अर्थात-

● साक्षियों को समन करना एवं हाजिर कराना और शपथ पर उनकी परीक्षा करना।

● किसी दस्तावेज को प्रस्तुत एवं प्रकट करने की अपेक्षा करना।

● शपथ पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना।

● किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से कोई लोक अभिलेख अथवा उसकी प्रतिलिपि अपेक्षित करना।

● दस्तावेजों अथवा साक्षियों की परीक्षा हेतु कमीशन निकालना।

धारा 17 :- शिकायतों की जांच

● आयोग, मानव अधिकारों के अतिक्रमण की शिकायतों की जाँच करते समय-

● केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार या उसके अधीनस्थ किसी अन्य प्राधिकारी अथवा संगठन से ऐसे समय के भीतर, जो आयोग द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये, रिपोर्ट अथवा जानकारी मांग सकेगा परन्तु,

● यदि आयोग को सीमित समय के भीतर जानकारी अथवा रिपोर्ट प्राप्त नहीं होती है, तो वह स्वयं जांच कर सकेगा।

● यदि जानकारी अथवा रिपोर्ट की प्राप्ति पर आयोग द्वारा यह समाधान हो जाता है कि कोई और जांच अपेक्षित नहीं है अथवा अपेक्षित कार्रवाई सम्बन्धित सरकार या प्राधिकारी द्वारा शुरू कर दी गई है अथवा की जा चुकी है, तो वह शिकायत के बारे में कार्यवाही नहीं कर सकेगा तथा शिकायतकर्ता को तद्नुसार सूचित कर सकेगा।

धारा 18 :- जांच के दौरान एवं जांच के पश्चात् कार्रवाई के सम्बंध मे प्रावधान।

धारा 19 :- सशस्त्र बलों की प्रक्रिया

● इस अधिनियम में किसी बात के रहते हुये भी, आयोग सशस्त्र बलों के सदस्यों द्वारा मानव अधिकारों के अतिक्रमण की शिकायतों के बारे में कार्रवाई करते दौरान निम्नलिखित प्रक्रियाओं का अनुसरण करेगा, अर्थात-आयोग स्वप्रेरणा से अथवा किसी अर्जी की प्राप्ति पर केन्द्रीय सरकार से रिपोर्ट मांग सकता है।

● रिपोर्ट की प्राप्ति के बाद, आयोग यथा स्थिति शिकायत के बारे में कार्यवाही नहीं करेगा अथवा उस सरकार को अपनी सिफारिशे कर सकेगा।

धारा 20 :- आयोग की वार्षिक एवं विशेष रिपोर्ट

● आयोग, केन्द्र सरकार तथा संबंधित राज्य सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा, तथा किसी भी समय ऐसे विषय पर, जो उसकी राय में इतना आवश्यक अथवा महत्वपूर्ण है कि उसको वार्षिक रिपोर्ट के प्रस्तुत किये जाने तक अस्थगित नहीं कर सकता है, उसे विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकता है।

धारा 21 :- राज्य मानव अधिकार आयोगों का गठन

● इसके अन्तर्गत कोई राज्य सरकार, राज्य आयोग को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिये व सौंपे गए कार्यों का पालन करने के लिये एक निकाय का गठन कर सकती है।

● राज्य आयोग ऐसी तारीख से, जो राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, निम्नलिखित से मिलकर बनता है, अर्थात-

● एक अध्यक्ष, जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति रहा हो।

● एक सदस्य जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है, अथवा रहा हो, अथवा राज्य में जिला न्यायालय का न्यायाधीश हो अथवा रहा हो, तथा जिसे जिला न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुये कम से कम 7 वर्ष का अनुभव हो।

● एक सदस्य ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किया जायेगा, जिसे मानव अधिकारों से सम्बन्धित विषयों का ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव हो।

धारा 22 :- राज्य आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति

● राज्यपाल अपने हस्ताक्षर तथा मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति करता है।

● किन्तु यह नियुक्ति, ऐसी समिति की सिफारिशों के प्राप्त होने के पश्चात की जाती है, जो निम्नलिखित से मिलकर बनती है, अर्थात-

● मुख्यमंत्री – अध्यक्ष

● विधान सभा अध्यक्ष – सदस्य

● विधान सभा में विपक्ष का नेता – सदस्य

● विधान परिषद का सभापति – सदस्य (राज्य में विधान परिषद होने की स्थिति में)

● विधान परिषद में विपक्ष का नेता – सदस्य (राज्य में विधान परिषद होने की स्थिति में)

● राज्य के गृह विभाग का भारसाधक मंत्री – सदस्य

धारा 23 :- राज्य आयोग के अध्यक्ष अथवा किसी सदस्य का त्यागपत्र व हटाया जाना ।

● राज्य आयोग का अध्यक्ष अथवा कोई सदस्य राज्यपाल को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना त्यागपत्र दे सकता है।

● उपधारा (2) के उपबन्धों के अधीन रहते हुये, राज्य आयोग के अध्यक्ष अथवा किसी सदस्य को केवल साबित कदाचार अथवा असमर्थता के आधार पर राष्ट्रपति के आदेशों द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है।

धारा 24 :- राज्य आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की पदावधि

● राज्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया कोई व्यक्ति, अपने पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक अथवा 70 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक, इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद ग्रहण करेगा।

● मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019 के अनुसार राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के कार्यकाल की अवधि को 5 वर्ष से घटा कर 3 वर्ष कर दिया गया है।

धारा 30 :- मानव अधिकार न्यायालय

● मानवाधिकार के उल्लंघन सम्बन्धी अपराधों के त्वरित निस्तारण हेतु राज्य सरकार सम्बन्धित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से राज्य के प्रत्येक जिले में स्थापित सत्र न्यायालय को मानव अधिकार न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी।

धारा 31 :- विशेष लोक अभियोजक

● इसके अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा एक लोक अभियोजक की नियुक्ति की जाएगी अथवा किसी अधिवक्ता को जिसने कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि-व्यवसाय किया हो, उसे विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी।

धारा 32 :- केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अनुदान दिया जायेगा।

धारा 33 :- राज्य सरकार द्वारा राज्य मानवाधिकार आयोग को अनुदान दिया जायेगा।

धारा 38 :- स‌द्भावना पूर्वक की गई कार्यवाही के लिये संरक्षण।

धारा 39 :- अधिकारियों एवं सदस्यों का लोक सेवक होना।

धारा 40 :- केन्द्रीय सरकार को नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है।

धारा 41 :- राज्य सरकार को नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है।

धारा 42 :- कठिनाईयों का समाधान करने की शक्ति।

धारा 43 :- व्यावृत्ति तथा निरसन ।

 

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पिछले 2 व अधिक सालों से जीवित, सजीव, बेबाक और ठोस लेखनी की छाप छोड़ते आये इंजीनियर उमेश यादव, जिला फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश के रहने वाले है। आगरा विश्वविघालय से B.A और UPBTE से पॉलीटेक्निक डिप्लोमा (ME) और UPBTE से B.Tech (ME)करने के बाद आजकल फिरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश मे रहते हुए स्वतंत्र लेखन कार्य के प्रति प्रतिबद्ध व समर्पित है। सरकारी नौकरी, प्राईवेट नौकरी, के सभी विषय बार + Chepter Wise Study material सहित अन्य सभी विषयों पर गंभीर, जुझारू और आलोचनात्मक / समीक्षात्मक लेखनी के लिए इंजीनियर उमेश यादव कई बार विवादों का शिकार होते हुए निडरतापूर्वक लेखन करने के लिए जाने जाते है।

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