मृदा (Soil) से संबंधित सभी प्रश्न जो की प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं वे सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लाभकारी होगा जैसे UPSC, UPPSC, MPPCS, UKPCS,BPSC,UPPCS,UP POLICE CONSTABLE, UPSI,DELHI POLICE, MP POLICE, BIHAR POLICE, SSC, RAILWAY, BANK, POLICE,RAILWAY NTPC,RAILWAY RPF,RAILWAY GROUP D,RAILWAY JE,RAILWAY TECNICIAN, Teaching Bharti अन्य सभी परीक्षाओं के लिए उपयोगी
■ मृदा (Soil)——>
मृदा (Soil) एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है। मृदा शब्द की उत्पत्ति, लैटिन भाषा के सोलम (Solum) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है – फर्श (Floor) I
■ मृदा विज्ञान (Pedology)——->
● मृदा विज्ञान में मृदा का अध्ययन प्राकृतिक संसाधन के रूप में किया जाता है। इसके अन्तर्गत मृदा का निर्माण मृदा का वर्गीकरण तथा मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों का अध्ययन किया जाता है। |
● मृदा अनेक प्रकार के खनिजों, पौधों और जीव-जन्तुओं के अवशेषों से बनी है। भू-पृष्ठ पर असंगठित दानेदार कणों वाली पतली परत, मृदा (Soil) कहलाती है।
● वैज्ञानिकों के अनुसार, मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समुच्चय है। इसमें जीवित एवं मृत पदार्थ सम्मिलित होते हैं जिनमें पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है।
● वनस्पतियों को पोषण प्रदान करने की मृदा की प्राकृतिक क्षमता मृदा की उर्वरता (Fertility) कहलाती है।
■ अपक्षय (Weathering)——->
● तापमान परिवर्तन, तुषार क्रिया, पौधों, प्राणियों एवं मनुष्य के क्रियाकलापों द्वारा शैलों का टूटना और क्षय होना अपक्षय कहलाता है। |
■ प्राकृतिक रूप से उपलब्ध मृदा पर कारकों का प्रभाव——->
■ मूल पदार्थ (Parent Material)——->
● मृदा मूलतः जिस पदार्थ के क्षरण से निर्मित होती है वह मृदा का मूल पदार्थ अथवा जनक पदार्थ (Parent Material) कहलाता है। ये पदार्थ ग्रेनाइट, संगमरमर, स्लेट जैसी कठोर और प्रतिरोधी चट्टानों के साथ-साथ ज्वालामुखीय लावा, राख, रूपांतरित (शिष्ट, नीस) और अवसादी चट्टानों (बलुआ पत्थर, चिकनी मिट्टी, गाद और चूना पत्थर) जैसी अपेक्षाकृत कम प्रतिरोधी चट्टानें भी हो सकती हैं।
■ चट्टान (Rock)——->
● चट्टान शब्द का प्रयोग केवल ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर जैसे कठोर और उच्च प्रतिरोधक पदार्थों के लिए ही नहीं होता है बल्कि इसका प्रयोग कंकड़, चिकनी मिट्टी, असंपीडित बालू, लोयस तथा जलोढ़ जैसे कम सघन और निम्न प्रतिरोधी मृदाओं के लिए भी किया जाता है। |
■ अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष 2015——->
● संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष घोषित किया। वर्ष 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय मृदा के महत्व की दिशा में वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से किया गया। |
■ ह्यूमस (Humus)——->
● ह्यूमस गाढ़े भूरे अथवा काले रंग का जटिल कार्बनिक पदार्थ है, जिसका निर्माण वनस्पतियों एवं जीवों के से होता है। ह्यूमस सामान्यतः मृदा में अथवा मृदा के नीचे पाया जाता है। भिन्न-भिन्न मृदाओं में ह्यूमस की मात्रा में भी भिन्नता पायी जाती है।
● ह्यूमस मृदा को नमी (Moisture) का अवशोषण करने तथा उस नमी को बनाए रखने में सक्षम बनाता है। मृदा में ह्यूमस की उपस्थिति पौधों की संतुलित वृद्धि में सहायक होती है।
■ मृदा गठन (Soil Texture)——->
● मृदा में विभिन्न प्रकार के कण पाये जाते हैं। सबसे बारीक मृदा को कोलॉइडल मृत्तिका (Colloidal Clay) कहा जाता है, जिसके कणों को नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता।
● मृदा कणों के बढ़ते आकार के आधार पर इन्हें बजरी (Gravel), रेत (Sand), गाद (Silt), चीका (Clay), पंक (Mud) आदि नामों से भी जाना जाता है। इन से मिलकर विभिन्न प्रकार की दोमट (Loam) मृदाओं का निर्माण होता है।
● जब कणों की 3-4 किस्में एक साथ मिल जाती हैं, तो दोमट मृदा अधिक संश्लिष्ट हो जाती है। भारत की अधिकांश मृदाएँ दोमट किस्म की हैं।
मृदा के कणों के प्रकार | कणों के आकार |
1.कलिलीय मृत्तिका | X- Ray विश्लेषण द्वारा |
2.मृत्तिका | 0.002 मिमी. से कम |
3.गाद | 0.002 – .05 मिमी. |
4.सूक्ष्म रेत | 0.05 – 0.2 मिमी |
5.स्थूल रेत | 0.2 – 2.0 मिमी. |
6.बजरी एवं गुटिका | 2 मिमी. से अधिक |
● मृदा के कणों की माप का मानक पैमाना मिलीमीटर है। इसकी छोटी इकाई माइक्रॉन है। (1 माइक्रॉन = 0.001 मिमी.) |
■ प्रमुख संघटक तत्वों के अनुपात के आधार पर मृदा के प्रकार——->
■ मृदा संरचना (Soil Structure)——->
● मृदा के विभिन्न कण (बालू, गाद, चीका, ह्यूमस आदि) जिस क्रम एवं व्यवस्था में संगठित होकर मृदा का निर्माण करते हैं, वह व्यवस्था (Arrangement) एवं संगठन (Organization) मृदा संरचना कहलाती है। मृदा संरचना मृदा में जल एवं वायु की मात्रा को नियंत्रित करती है। मृदा में जल एवं वायु की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए क्योंकि, बीजों के अंकुरण, जड़ों के श्वसन तथा जीवाणु गतिविधियों (Bacterial Activities) के लिए जल एवं वायु की आवश्यकता होती है।
■ मृदा अम्लीयता (Soil Acidity)——->
● मृदा के विलयन में मुक्त हाइड्रोजन आयनों का संकेद्रण (Concentration of free Hydrogen lons-H*) मृदा की अम्लीयता कहलाता है। मृदा की अम्लीयता को pH मान में मापा जाता है। यदि pH मान 6 से कम है तो मृदा अम्लीय मानी जाती है। मृदा की अम्लीयता दूर करने के लिए चूना (Lime) अथवा जिप्सम (Gypsum) का प्रयोग किया जाता है।
■ PH मान के अनुसार मिट्टी की प्रकृति——->
क्र. | PH मान | मिट्टी की प्रकृति |
1. | 1 से 6 | अम्लीय मिट्टी (Acidic Soil) |
2. | 7 | उदासीन मिट्टी (Neutral Soil) |
3. | 8 से 14 | क्षारीय मिट्टी (Alkaline Soil) |
■ मृदा वायु (Soil Air)——–>
● मृदा में कणों के बीच असंख्य छिद्र (Pores) पाए जाते हैं, जिनमें जल एवं वायु विद्यमान होती है। यह वायु स्वतंत्र रूप से तथा जल के साथ घुली अवस्था में भी पायी जाती है। इस वायु में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन डाईऑक्साइड आदि गैसों की उपस्थिति होती है, जो पौधों के श्वसन एवं वृद्धि तथा मृदा में उपस्थित जीवाणुओं की विभिन्न क्रियाओं के लिए आवश्यक होती हैं।
■ मृदा जल (Soil Water)——->
● मृदा में जल की उपस्थिति मृदा संरचना पर निर्भर करती है। मृदा में जल की मात्रा शून्य से जल जमाव की स्थिति तक हो सकती है। सुगठित मृदा में पर्याप्त मात्रा में जल की उपस्थिति होती है।
■ मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)——->
● मृदा की ऊपरी सतह से लेकर उसकी मूल चट्टान तक के सभी संस्तरों को समग्र रूप से मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है।
■ मृदा संस्तर (Soil Horizon)——->
● मृदा की कोई परत अपने ऊपर या नीचे की परतों से भौतिक और रासायनिक रूप से भिन्न हो सकती है। इन भिन्न परतों को मृदा संस्तर कहते हैं। मृदा के चार संस्तर होते हैं: –
● मृदा संस्तर के प्रकार
क. संस्तर (Horizon A)
ख. संस्तर (Horizon B)
ग. संस्तर (Horizon C)
घ. संस्तर (Horizon D)
■ क. संस्तर (Horizon A) ——> यह सबसे ऊपरी खण्ड होता है, जहाँ पौधो की वृद्धि के लिए अनिवार्य जैव पदार्थों, खनिज पदार्थों, पोषक तत्वों एवं जल का संयोजन होता है।
■ ख. संस्तर (Horizon B) ——> यह क संस्तर और ग संस्तर के बीच संक्रमण खण्ड होता है, जिसे नीचे व ऊपर दोनों ओर से पदार्थ प्राप्त होते हैं। इसमें कुछ जैव पदार्थ होते हैं, तथापि खनिज पदार्थ का अपक्षयन स्पष्ट दिखाई देता है।
■ ग. संस्तर (Horizon C)———–> इस संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री (Loose Parent Material) से होती है। यह परत मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रथम अवस्था होती है और अंततः ऊपर की दो परतें इसी से बनती हैं।
■ घ. संस्तर (Horizon D)——> उपर्युक्त तीन संस्तरों के नीचे एक चट्टान होती है, जिसे जनक चट्टान अथवा आधारी चट्टान कहा जाता है।
● मृदा जिसका एक जटिल एवं भिन्न अस्तित्व है, सदैव मृदा वैज्ञानिकों को आकर्षित करती रही है। इसके महत्व को समझने के लिए आवश्यक है कि मृदा का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए।
■ मृदा निर्माण की प्रक्रियाएँ——->
● मृदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त जैव पदार्थों व भूमि में पाये जाने वाले खनिजों से होता है।
● मृदा निर्माण या मृदाजनन (Pedogenesis) सर्वप्रथम अपक्षयन पर निर्भर करती है। यह अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण की मूल प्रक्रिया होती है।
● मृदा-निर्माण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं- उच्चावच, जनक सामग्री, जलवायु, वनस्पति एवं अन्य जीव रूप तथा समय। इनके अतिरिक्त मानवीय क्रियाएँ भी पर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती हैं।
■ मृदा निर्माण के कारक—–>
○ मूल पदार्थ (शैलें)
○ स्थलाकृति
○ जलवायु
○ जैविक क्रियाएँ
○ कालावधि (समय)
■ मूल पदार्थ (Parent Material)——->
● मूल शैल कोई भी तदस्थाने (In situ) या उसी स्थान पर अपक्षयित शैल मलबा (अवशिष्ट मृदा) या लाये गए निक्षेप (परिवहनकृत मृदा) हो सकते हैं।
● मृदा निर्माण मलबा के आकार व मलबा के कणों का विन्यास तथा शैल निक्षेप के खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर करता है।
● इसके अंतर्गत अपक्षयन की प्रकृति एवं उसकी दर तथा आवरण की गहराई/मोटाई अन्य महत्वपूर्ण तत्व होते हैं।
● जब तक मृदाएँ बहुत नूतन (Young) अवस्था में होती हैं एवं पर्याप्त परिपक्व नहीं हो जाती हैं, तब तक मृदाओं एवं मूल शैलों के प्रकार में घनिष्ठ सम्बंध होता है।
● कुछ चूना क्षेत्रों (Lime Stone Areas) में भी अपक्षयन प्रक्रियाएँ विशिष्ट एवं विचित्र (Peculiar) होती हैं, वहाँ मिट्टियाँ मूल शैल से स्पष्ट सम्बंध दर्शाती हैं।
■ स्थलाकृति/उच्चावच (Relief)——->
● मूल शैल की भाँति स्थलाकृति भी एक दूसरा निष्क्रिय नियंत्रक कारक है।
● तीव्र ढालों पर मृदा छिछली (Thin) व सपाट एवं उच्च क्षेत्रों में गहरी/मोटी (Thick) होती है। जबकि निम्न ढालों पर जहाँ अपरदन मंद एवं जल का परिश्रवण (Percolation) अच्छा रहता है, मृदा निर्माण बहुत ही अनुकूल होता है।
● समतल क्षेत्रों में चीका मिट्टी (Clay) के मोटे स्तर का विकास हो सकता है तथा जैव पदार्थ के अच्छे एकत्रीकरण के साथ मृदा का रंग भी गहरा (काला) हो सकता है।
● मध्य अक्षांशों में दक्षिणोन्मुख सूर्य की किरणों से ढके ढालों की वनस्पति एवं मृदा की दशा भिन्न होती है तथा उत्तरोन्मुख ठंडे, नम दशाओं वाले ढालों पर अन्य प्रकार की मिट्टी और वनस्पति मिलती है।
■ जलवायु (Climate)——>
● जलवायु, मृदा निर्माण में एक महत्वपूर्ण सक्रिय कारक है। मृदा के विकास में संलग्न जलवायविक तत्वों में प्रमुख हैं-
(i) प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व अवधि।
(ii) आर्द्रता, तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता।
■ जैविक क्रियाएँ (Organic Process)——->
● जैविक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत, विभिन्न सजीव जीव प्रकृति में विद्यमान जैविक तथा अजैविक घटकों के साथ अभिक्रिया करते हैं। मृदा में उपस्थित जैव पदार्थ नाइट्रोजन स्थरीकरण तथा नमी धारण करने की क्षमता आदि प्रक्रियाओं में भी सहायक होते हैं।
● कुछ जैविक अम्ल जो ह्यूमस बनने की अवधि में निर्मित होते हैं, वे मृदा के मूल पदार्थों के खनिजों के विनियोजन (Allocation) में सहायता करते हैं।
● जैविक क्रियाओं की गहनता भी मृदा निर्माण को प्रभावित करती है। आर्द्र एवं अत्यंत गर्म जलवायु में ह्यूमस एकत्रीकरण अधिक हो जाता है, क्योंकि यहाँ बैक्टीरियल वृद्धि अधिक होती है। यदि मृदा बहुत अधिक ठंडी या बहुत शुष्क होती है, तो जैविक क्रिया मंद या बंद हो जाती है।
● आर्द्र, उष्ण और भूमध्यरेखीय जलवायु में बैक्टीरियल वृद्धि एवं क्रियाएँ सघन होती हैं तथा मृत वनस्पति शीघ्रता से ऑक्सीकृत हो जाती हैं, जिससे मृदा में ह्यूमस की मात्रा बहुत कम रह जाती है।
● बैक्टीरिया एवं मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त कर उसे रासायनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं, जिसका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) कहते हैं।
● राइजोबियम (Rhizobium), एक प्रकार का बैक्टीरिया है, जो तंतु वाले (Leguminous) पौधों की जड़ ग्रंथिका में रहता है तथा मेजबान (Host) पौधों के लिए लाभकारी नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करता है। |
● चींटी (Ant), दीमक (Termite), केंचुए (Earthworm), कृतक (Rodents) इत्यादि कीटों का महत्व अभियांत्रिक (Mechanical) होता है। मृदा निर्माण में ये महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे मृदा को बार-बार ऊपर-नीचे करते रहते हैं। केंचुए मृदा खाते हैं, अतः उनके शरीर से निकलने वाली मृदा रसायन में परिवर्तित हो जाती है।
■ कालावधि (Time Period)——–>
● मृदा निर्माण में कालावधि तीसरा महत्वपूर्ण कारक है। मृदा निर्माण की प्रक्रिया में लगने वाली अवधि मृदा की परिपक्वता एवं उसके पार्श्विका (Profile) के विकास का निर्धारण करती है।
● कुछ समय पहले निक्षेपित जलोढ़ मिट्टी या हिमानी टीलों से निर्मित मृदाएँ तरूण/युवा (Young) मानी जाती हैं तथा उनमें संस्तरों (Horizons) का अभाव होता है अथवा कम विकसित संस्तर मिलते हैं।
● प्राकृतिक प्रणाली के महत्वपूर्ण घटक के रूप में तथा मानव कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में मृदा के महत्व का उत्सव मनाने के लिए 5 दिसम्बर को विश्व मृदा दिवस के रूप में स्वीकार किया गया है।
■ राजा भूमिबोल विश्व मृदा दिवस-2020 पुरस्कार——->
● मार्च, 2021 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा भारतीय कृषि संगठन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को यह पुरस्कार प्रदान किया गया। ● थाईलैण्ड के राजा भूमिबोल अदुल्यादेज के नाम पर प्रायोजित इस पुरस्कार का प्रारंभ वर्ष 2018 में किया गया था। ● यह पुरस्कार उन व्यक्तियों या संस्थानों को प्रदान किया जाता है। जो सफलतापूर्वक और प्रभावशाली ढंग से विश्व मृदा दिवस समारोह का आयोजन कर मृदा संरक्षण के विषय में जागरुकता बढ़ाते है। |
● मृदा के विकास या उसकी परिपक्वता के लिए कोई विशिष्ट (Specific) कालावधि नहीं है।
■ मृदाओं का वर्गीकरण——->
● प्राचीन काल में मृदा को दो वर्गों में बाँटा जाता था-
- उर्वर (उपजाऊ) 2. ऊसर (अनुपजाऊ)
● भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) के तत्वाधान में राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण ब्यूरो एवं भूमि उपयोग आयोजन संस्थान द्वारा भारतीय मृदाओं पर बहुत से अध्ययन किए गए।
● मृदा अध्ययन एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे तुलनात्मक बनाने के प्रयासों के अंतर्गत ICAR ने भारतीय मृदाओं को उनकी प्रकृति और उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग की मृदा वर्गीकरण पद्धति पर आधारित है।
■ मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना———>
● 19 फरवरी, 2015 को राजस्थान के सूरतगढ़ में मिट्टी की खराब होती गुणवत्ता की जाँच करने तथा कृषि उत्पादकता को बढ़ाने हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरूआत की गई। ● प्रत्येक 3 वर्ष पर कार्ड का नवीनीकरण किया जाता है। इसका उद्देश्य उपलब्ध संसाध नों के उपयोग के द्वारा उत्पादकता में सुधार लाना व किसानों की स्थिति को सुधारना है। ● इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण युवा एवं किसान जिनकी आयु 40 वर्ष तक है, मृदा परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना एवं नमूना परीक्षण कर सकते है, जिसके खर्च का 75% केन्द्र एवं राज्य सरकार वहन करती है। |
● भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) द्वारा संरचनात्मक मिट्टी और खनिज, मिट्टी के रंग व संसाधनात्मक महत्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय मिट्टी को 8 वर्गों में विभाजित किया गया है-
■ भारत की मृदाओं का वर्गीकरण——–>
2. काली मृदाएँ
5. शुष्क मृदाएँ
6. लवणीय मृदाएँ
7. पीटमय मृदाएँ
8. वन मृदाएँ
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