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■ उत्तर का विशाल मैदान (Northern Great Plain):———->
● उत्तरी पर्वतीय भाग हिमालय पर्वत श्रृंखला के दक्षिण एवं दक्षिणी पठार (प्रायद्वीपीय पठार) के उत्तर में विशाल समतल भू-भाग है। यह गंगा-सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेपों से निर्मित मैदान है। इसलिए इसे सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहा जाता है।
● लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े द्रोणी (Basin) क्षेत्र में जलोढ़ों का निक्षेप हुआ, जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ है।
● इसका विस्तार 7.5 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर है. इस मैदान की पूर्व-पश्चिम लम्बाई 3,200 किमी. एवं औसत चौड़ाई 150 से 300 किमी. है। समृद्ध मृदा आवरण, पानी की पर्याप्त उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु के कारण कृषि की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक उपजाऊ क्षेत्र है इसलिए यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक प्रदेश है।
● यह मैदान सामान्यतः समुद्र तल से 240 मीटर से अधिक ऊँचा नहीं है। इसकी औसत गहराई 4000-6000 मी. है। पश्चिमी मैदान का ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम और पूर्वी मैदान का डाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है।
● इस समतल भू-भाग के मध्य अरावली पर्वत के आ जाने के कारण सिंधु और इसकी सहायक नदियाँ (झेलम, चेनाव, रावी, व्यास और सतलज) इस अवशिष्ट पर्वत के पश्चिम में तथा गंगा और उसकी सहायक नदियाँ (यमुना, गण्डक, घाघरा, गोमती, सरयू, कोसी, महानन्दा, सोन आदि) पूर्व में बहती हैं।
● उत्तर के क्षेत्रों से आने वाली नदियाँ निक्षेपण कार्य करती हैं। नदी के निचले भागों में ढाल कम होने के कारण नदी की गति कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप नदीय द्वीपों का निर्माण होता है।
● ये नदियाँ निचले भागों में गाद एकत्र हो जाने के कारण बहुत सी धाराओं में बँट जाती हैं, जिन्हें वितरिकाएँ (Distributries) कहा जाता है।
■ उत्तरी मैदान को मुख्यतः तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है-
1. पंजाब का मैदान (Panjab Plain):———->
● उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों (झेलम, चेनाब, रावी, व्यास तथा सतलज) द्वारा निर्मित किए गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है।
● इस मैदान का विस्तार पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में 1.75 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर है। सिन्धु तथा इसकी सभी सहायक नदियाँ हिमालय से निकलती हैं। इस क्षेत्र में दोआबों की संख्या बहुत अधिक है। रावी और व्यास के दोआब को बारी दोआब कहते हैं तथा व्यास और सतलज के बीच के दोआब को बिस्त दोआब कहा जाता है।
● दोआब का अर्थ है, दो नदियों के बीच का भाग। दोआब दो शब्दों से मिलकर बना है- दो तथा आब अर्थात् पानी। इसी प्रकार पंजाब भी दो शब्दों से मिलकर बना है- पंज का अर्थ पाँच तथा आब का अर्थ है- पानी। जो कि पंजाब में प्रवाहित पाँच नदियों का सूचक है। |
● बालुका स्तूप यहाँ की प्रमुख स्थलाकृति है। पूर्वी भाग में कई पहाड़ियाँ हैं। लूनी नदी इस प्रदेश की प्रमुख नदी है जो वर्षा के दिनों में कच्छ के रण तक जाती है। इस प्रदेश में सांभर, देगान, डीडवाना जैसी प्रसिद्ध खारे पानी की झीलें हैं।
■ बालुका स्तूप (Sand Dune):———–>
● मरुस्थलों अथवा रेतीले प्रदेशों में पवन द्वारा रेत एवं बालू के निक्षेप (जमाव) से निर्मित टीलों या टिब्बों को बालुका स्तूप कहते हैं। इसकी चौड़ाई, लम्बाई की तुलना में 10 से 12 गुना अधिक पाई जाती है। ऊँचाई में पर्याप्त अन्तर मिलता है, जो कुछ मीटर से न लेकर 100 मीटर से अधिक हो सकती है। ● मरुस्थलों तथा रेतीले क्षेत्रों में पवन की दिशा में अवरोध (झाड़ी, वृक्ष, शिलाखण्ड, दीवार आदि) उपस्थित होने पर रेत का निक्षेप होने लगता है। जो धीरे-धीरे बालुका स्तूप का रूप धारण कर लेता है। बालुका स्तूप प्रायः समूह में मिलते हैं। जिन्हें स्तूप समूह (Dune Colony) या स्तूप श्रृंखला (Dune Chain) कहते हैं। |
2. गंगा का मैदान या मध्यवर्ती मैदान (Gangetic Plain):———–>
● यमुना नदी से लेकर पूर्व में बांग्लादेश की पश्चिमी सीमा तक विस्तृत मैदान को मध्यवर्ती मैदान या गंगा का मैदान कहते हैं। इसका विस्तार 1,400 किमी. की लम्बाई में घग्घर तथा तीस्ता नदियों के मध्य है, जो उत्तरी भारत के राज्यों (हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड) के कुछ भागों तथा पश्चिम बंगाल में विस्तृत है।
● इस मैदान का ढाल सामान्यतः उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। इस विस्तृत मैदान को तीन उप-भागों में बाँटा गया है-
■ ऊपरी गंगा मैदान:——–>
● यह गंगा मैदान का ऊपरी भाग है जो उत्तर में शिवालिक, पश्चिम में यमुना नदी, दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार तथा पूर्व में 100 मीटर की समोच्च रेखा द्वारा सीमांकित किया जाता है। इस मैदान की तीन लघु इकाइयाँ हैं:- (i) गंगा-यमुना दोआब, (ii) रूहेलखण्ड मैदान तथा (iii) अवध मैदान.
● मध्यवर्ती गंगा का मैदान:——->
● यह मैदान इलाहाबाद से फरक्का तक 1.45 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। उत्तर में शिवालिक, दक्षिण में विंध्य- रोहतासगढ़, छोटा नागपुर पठार, पश्चिम में 100 मीटर की समोच्च रेखा तथा पूर्व में बिहार-पश्चिम बंगाल सीमा इस क्षेत्र की सीमाएँ निर्धारित करते है। मध्य गंगा मैदान को दो उपभागों में बाँटा जाता है:- (i) उत्तरी गंगा मैदान जिसमें गंगा-घाघरा दोआब, मिथिला मैदान, कोसी मैदान तथा (ii) दक्षिणी गंगा मैदान जिसमें गंगा-सोन विभाजक, मगध मैदान तथा अंग मैदान शामिल हैं।
● निम्न गंगा मैदान———>
● इसका विस्तार उत्तर में दार्जिलिंग हिमालय के गिरिपद क्षेत्र से दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक तथा पश्चिम में छोटा नागपुर की पूर्वी सीमा से बांग्लादेश एवं असम की सीमाओं तक 80,968 वर्ग किमी. क्षेत्र पर है। |
3. ब्रह्मपुत्र का मैदान:———>
● ब्रह्मपुत्र का मैदान या पूर्वी मैदान, गंगा मैदान के पश्चिम विशेषकर असम राज्य में (सादिया के उत्तर-पूर्व से होकर धुबरी नामक स्थान तक) लगभग 720 किमी. की लम्बाई में विस्तृत है। इस मैदान के पश्चिमी भाग को छोड़कर सभी ओर ऊँचे पहाड़ी भाग हैं।
● इस भाग का ढाल क्रमशः उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर है। ब्रह्मपुत्र नदी इस मैदान के मध्य से गुजरती है, इस नदी के बीच स्थित माजुली द्वीप विश्व का सबसे बड़ा नदीय द्वीप है।
● ब्रह्मपुत्र घाटी का मैदान नदीय द्वीप और बालू रोधिकाओं की उपस्थिति के लिए जाना जाता है। यहाँ नदियों के बार-बार रास्ता बदलने के कारण बाढ़ की आवृत्ति अधिक है।
● ब्रह्मपुत्र नदी अपनी घाटी में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है। परन्तु बांग्लादेश में प्रवेश करने से पहले धुबरी के निकट यह नदी दक्षिण की ओर 90° का कोण बनाती हुई मुड़ जाती है। इस प्रकार इसके अवसादों से निर्मित मैदान पर उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। जहाँ कई प्रकार की फसलें जैसे- गेहूँ, चावल, गन्ना और जूट उगाई जाती हैं।
■ भौतिक आकृतियों की भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों का विभाजन-
● भौतिक आकृतियों की भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. भाबर 2. तराई 3. बांगर 4. खादर
1. भाबर (Bhabar):——–>
● यह क्षेत्र शिवालिक के गिरिपद प्रवेश में सिन्धु से लेकर तीस्ता तक अविच्छिन्न रूप से 8 से 16 किमी. की चौड़ी पट्टी में विस्तृत है। ढाल में अचानक कमी आने से यहाँ नदियाँ तथा धरातलीय अपवाह व्यापक पैमाने पर कंकड, बजरी एवं गोलाश्म इत्यादि का निक्षेपण करते हैं, जिसे भाबर के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में शिवालिक या उप हिमालयी क्षेत्र के समानांतर फैले समतल मैदान को भाबर कहा जाता है।
● कंकड़-पत्थरों (बजरी) की अधिकता के कारण इसमें इतनी अधिक सरन्ध्रता (पारगम्यता) पायी जाती है कि यहाँ छोटी नदियाँ विलीन हो जाती हैं तथा उनमें शुष्क मार्ग शेष रह जाते हैं। भाबर मैदान पश्चिम में चौड़े और पूर्व में सँकरे हैं। यह भाग कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं है।
2. तराई (Low Land):——–>
● भाबर के दक्षिण में यह 15-30 किमी. चौड़ी दलदली पेटी है, जहाँ नदियाँ धरातल पर पुनः प्रकट होती हैं तथा दलदली क्षेत्रों का निर्माण करती हैं।
● तराई क्षेत्र का विस्तार वर्षा की अधिकता के कारण पश्चिम की तुलना में पूर्व में अधिक पाया जाता है। इस प्रदेश में अत्यधिक नमी, जल उपलब्धता, सघन वन तथा जैव विविधता पायी जाती है। वनों के स्थान पर अन्य भूमि उपयोगों के विस्तार, विषेश कर कृषि से यहाँ पर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
3. बांगर (Bangar):———->
● उत्तरी मैदानों का सबसे विशालतम भाग पुरानी जलोढ़ मृदा से बना है, जो नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित है तथा वेदिका (Shrine) जैसी आकृति प्रदर्शित करता हैं। इस भाग को बांगर के नाम से जाना जाता हैं, जिसे स्थानीय भाषा में कंकड़ कहा जाता है।
● ये क्षेत्र नदी की बाढ़ सीमा से ऊपर स्थित पुराने जलोढ़क चबूतरे हैं। इनकी ऊचाई कहीं-कहीं पर 30 मीटर तक है। यहाँ पर पाई जाने वाली काँप मृदा का रंग गहरा है। जिसमें अशुद्ध कैल्शियम कार्बोनेट की ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं।
4. खादर (Khadar):——–>
● यह मैदान वह निचला भाग है, जहाँ नदियाँ प्रति वर्ष बाढ़ का जल फैलाती हैं एवं नवीन जलोढ़ परत का निर्माण करती हैं।नवीन जलोढ़क क्षेत्र जो निचले मैदान हैं और जहाँ बाढ़ का पानी प्रति वर्ष पहुँचकर नई मिट्टी की परत जमा कर देता है, खादर कहलाता है। उर्वरता एवं जल उपलब्धता के कारण ये प्रदेश कृषि के लिए आदर्श माने जाते हैं।
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