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■ भारत के मुख्य भू-आकृतिक प्रदेश———>
■ भारत के मुख्य भू-आकृतिक प्रदेश भौतिक संरचना तथा धरातल के स्वरूप के आधार पर——>
●उत्तरी पर्वतीय श्रृंखला ●उत्तर का विशाल मैदान ●समुद्र तटीय मैदान ●प्रायद्वीपीय पठार ●भारतीय मरुस्थलीय प्रदेश ●द्वीप समूह
■ उत्तरी पर्वतीय श्रृंखला(Northern Mountain Range)———->
● यह पर्वतीय भाग महान हिमालय पर्वत श्रृंखला के एक भाग का निर्माण करता है।
● भारत की उत्तरी सीमा पर विस्तृत हिमालय पर्वत भूगर्भिक रूप से युवा (नवीन) एवं बनावट के दृष्टिकोण से बलित तथा विश्व की नवीनतम मोड़दार पर्वत श्रृंखला है। हिमालय की उत्पत्ति भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव से हुई है।
● हिमालय का निर्माण एक लम्बे भू-गर्भिक ऐतिहासिक काल के दौरान सम्पन्न हुआ है। इसके निर्माण के संबंध में कोवर का भू-सन्नति सिद्धान्त (Geo-Syncline Theory) एवं अमेरिकी भू-वैज्ञानिक हैरी हेस का प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonics Theory) सर्वाधिक मान्य हैं। कोबर ने भू-सन्नतियों को पर्वतों का पालना (Cradle of Mountains) कहा है। ये लंबे, सँकरे व छिछले जलीय भाग हैं।
● कोबर के भू-सन्नति सिद्धांत के अनुसार, आज से 7 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय के स्थान पर टेथिस भू-सन्नति (Tethys Geosyncline)थी जो उत्तर के अंगारालैण्ड भू-भाग को दक्षिण के गोंडवानालैण्ड से पृथक करती थी। इन दोनों के अवसाद टेथिस भू-सन्नति में जमा होते रहे एवं इन अवसादों का क्रमशः अवतलन होता रहा। इसके परिणामस्वरूप दोनों संलग्न अग्रभूमियों में दवाव जनित भू-संचलन उत्पन्न हुआ जिनसे क्युनलुन एवं हिमालय-काराकोरम श्रेणियों का निर्माण हुआ।
● हिमालय की सभी श्रृंखलाओं का निर्माण अल्पाइन भूसंचलन के तहत टर्शियरी युग में टेथिस भूसन्नति (सागर) में अवसादों के जमाव के परिणामस्वरूप हुआ है। अतः हम टेथिस सागर कोहिमालय का गर्भ गृह या जन्मस्थल भी कह सकते हैं।
● हैरी हेस के द्वारा प्रतिपादित प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत हिमालय की उत्पत्ति की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या करता है। इसके अनुसार, लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट की ओर भारतीय प्लेट उत्तर-पूर्वी दिशा में गतिशील हुई। दो से तीन करोड़ वर्ष पूर्व ये भू-भाग अत्यधिक निकट आ गए, जिनसे टेथिस के अवसादों में वलन पड़ने लगा एवं हिमालय का उत्थान प्रारम्भ हो गया।
● लगभग एक करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की सभी श्रृंखलाएँ आकार ले चुकी थीं। सेनोजोइक महाकल्प के इयोसीन व ओलिगोसीन कल्प में बृहद हिमालय का निर्माण हुआ, मायोसीन कल्प में पोटवार क्षेत्र के अवसादों के वलन से लघु हिमालय बना। शिवालिक का निर्माण इन दोनों श्रेणियों के द्वारा लाए गए अवसादों के वलन से प्लायोसीन कल्प में हुआ। क्वार्टरनरी अर्थात् नियोजोइक महाकल्प के प्लीस्टोसीन व होलोसीन कल्प में भी इसका निर्माण होता रहा है।
● वास्तव में हिमालय अभी भी एक नवीन पर्वत है, जिसकी ऊँचाई लगातार बढ़ रही है। हिमालयी क्षेत्र में आने वाले भूकम्प, हिमालयी नदियों के निरंतर परिवर्तित होते मार्ग एवं पीरपंजाल श्रेणी में 1,500 से 1,850 मीटर की ऊँचाई पर मिलने वाले झीलीय निक्षेप (Lake Deposits) करेवा हिमालय के उत्थान के अभी भी जारी होने की ओर संकेत करते हैं।
● करेवा——-> जम्मू-कश्मीर में पीरपंजाल श्रेणियों के पाश्वों में 15,00 से 1,850 मी. की ऊंचाई पर मिलने वाले झीलीय निक्षेपों को करेवा के नाम से जाना जाता है। कश्मीर घाटी के करेवा निक्षेपों में लिग्नाइट प्राप्त होने के संकेत भी मिले हैं। |
● भारत की उत्तरी सीमा पर विश्व की सबसे ऊँची एवं पूर्व-पश्चिम में विस्तृत सबसे बड़ी पर्वतमाला है। यह विश्व की नवीनतम मोड्दार पर्वत श्रेणी है। इस पर्वत श्रेणी के पश्चिमी भाग में नंगा पर्वत के निकट एवं पूर्वी भाग में मिशमी पहाड़ी या नामचा बरवा के निकट दो तीखे अक्षसंघीय मोड़ (Syntaxial Bend) हेयरपिन टर्न की भाँति मिलते हैं। ये मोड़ प्रायद्वीपीय पठारी भाग के उत्तर-पूर्वी दवाव के कारण निर्मित हुये हैं।
● हिमालय की पर्वत श्रेणियाँ प्रायद्वीपीय पठार की ओर उत्तल एवं तिब्बत की ओर अवतल हो गई हैं। पश्चिम से पूर्व की ओर पर्वतीय भाग की चौड़ाई घटती जाती है किन्तु ऊँचाई बढ़ती जाती है एवं ढाल भी तीव्र होता जाता है।
पर्वत श्रृंखला (Mountain Ranges)——-> ● जब विभिन्न युगों में भिन्न-भिन्न प्रकार के लंबे तथा संकरे पर्वतों का विस्तार समानांतर रूप से पाया जाता है तो उसे पर्वत श्रृंखला कहा जाता है। क्युनलुन, काराकोरम एवं हिन्दुकुश पामीर गाँठ के अंग है! |
● हिमालय का मुख्य अक्ष चापाकार रूप में पश्चिम से पूर्व में ब्रम्हापुत्र नदी तक स्थित है। इसकी लम्बाई लगभग 2500 किमी. तथा औसत चौड़ाई 150-400 किमी. है।
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