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■ प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र——->
● प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र हिमालयी अपवाह तंत्र से प्राचीन है। यह तथ्य नदियों की प्रौढ़ावस्था और नदी घाटियों के चौड़ा व उथला होने से प्रमाणित होता है।
● पश्चिमी तट के समीप स्थित पश्चिमी घाट, अरब सागर में गिरने वाली छोटी नदियों तथा बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के मध्य जल-विभाजक का कार्य करता है।
● प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से निकलने वाली चंबल, कालीसिंध, केन, बेतवा व सोन नदियाँ गंगा नदी तंत्र के अंग हैं। प्रायद्वीप के प्रमुख नदी-तंत्र महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी हैं।
■ प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का उद्विकास——->
● प्राचीन काल की तीन प्रमुख भूगर्भिक घटनाओं ने प्रायद्वीपीय भारत के अपवाह तंत्र को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया है-
1. आरंभिक टर्शियरी काल (Tertiary Period) के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी भाग का अवतलन या धँसाव हुआ, जिससे यह भाग समुद्रतल से नीचे चला गया। परिणामस्वरूप, मूल जल संभर क्षेत्र के दोनों ओर नदियों की सामान्य सममित योजना में परिवर्तन हो गया।
2. हिमालय में होने वाले उत्थान के कारण प्रायद्वीपीय खंड के उत्तरी भाग का अवतलन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भ्रंश द्रोणियों का निर्माण हुआ।
3. नर्मदा और तापी नदियाँ इन्हीं भ्रंश घाटियों में अपवाहित हो रही हैं तथा अपरदित पदार्थ से मूल दरारों को भी भर रही हैं। इसलिए, इन नदियों में जलोढ़ व डेल्टा निक्षेप की कमी पाई जाती है।
4. इसी काल में प्रायद्वीपीय खंड उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा में झुक गया, परिणामस्वरूप, इसका अपवाह बंगाल की खाड़ी की ओर उन्मुख हो गया।
■ प्रायद्वीपीय नदी तंत्र की विशेषताएँ——->
● प्रायद्वीपीय नदियों की विशेषता है, कि ये अपने एक सुनिश्चत मार्ग पर चलती हैं, विसर्प नहीं बनाती और ये बारहमासी (सदानीरा) नहीं हैं।
● ये नदियाँ समुद्र में गिरते समय डेल्टा का निर्माण करती है। यद्यपि भ्रंश घाटियों में बहने वाली नदियों में से नर्मदा और तापी इसके अपवाद हैं, जो ज्वारनदमुख (Estuary) का निर्माण करती हैं।विश्व की सबसे बड़ी एश्चुअरी सेंट लॉरेन्स नदी की है।
● जब नदियों के मुहाने पर नदियों द्वारा बहाकर लाया गया मलबा समुद्र में चला जाता है तब इस प्रकार के समुद्र एवं नदियों के मिलन बिन्दु को एश्चुअरी कहते हैं। ● प्रायद्वीपीय नदियों की अपवाह द्रोणियाँ आकार में अपेक्षाकृत छोटी होती हैं। |
● प्रायद्वीपीय भारत बहुत ही प्राचीन भू-भाग है। इसलिए इस क्षेत्र की नदियाँ वृद्धावस्था में हैं। जो मुख्यतः वृक्षाकृतिक अपवाह तंत्र बनाती हैं।
● दक्षिण भारत की सभी नदियाँ अपने आधार तल पर पहुँच गई हैं जिनमें अपनी घाटी को लम्बवत् काटने की उनकी क्षमता लगभग समाप्त हो गई है।
● वर्तमान में ये नदियाँ धीरे-धीरे अपने किनारे को काट रही हैं, जिससे इनकी घाटियाँ चौड़ी होती जा रही हैं। इसी के परिणामस्वरूप, इनके निचले भागों में बाढ़ का पानी बहुत बड़े क्षेत्र में भर जाता है।
● संभवतः हिमालय के निर्माण के समय झटके लगने के कारण दक्षिण भारत का ढाल पूर्व की ओर हो गया था। नर्मदा और तापी को छोड़कर शेष सभी नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं।
● नर्मदा और तापी नदियाँ पठार के ढाल का अनुसरण न करके भ्रंश घाटियों से होकर बहती हैं। यही कारण है कि, ये नदियाँ पश्चिम की ओर प्रवाहित होते हुए अरब सागर में जा मिलती हैं।
● स्वर्णरखा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, पालार, कावेरी और वैगई दक्षिणी भारत के अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियाँ हैं, जो पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
● प्रायद्वीय भारत के उत्तरी भाग का ढ़ाल उत्तर की ओर है। अतः विंध्याचल पर्वत से निकलने वाली अधिकांश नदियाँ उत्तर की ओर बहती हुई यमुना और गंगा में मिल जाती हैं। इनमें चंबल, कालीसिन्ध, बेतवा, केन और सोन नदियाँ प्रमुख हैं।
● हिमालयी नदियों के विपरीत प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में जल कम-ज्यादा होता रहता है क्योंकि, ये वर्षा की मात्रा पर निर्भर रहती हैं।
● प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट से होता है। पश्चिमी घाट से निकलकर पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ लम्बे मार्ग का अनुसरण करती हैं तथा डेल्टा का भी निर्माण करती हैं।
● प्रायद्वीपीय भारत में पूर्व दिशा में बहने वाली नदियों का उत्तर से दक्षिण की ओर क्रम इस प्रकार है- स्वर्ण रेखा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, कावेरी और वैगई।
● सोन, नर्मदा और महानदी अमरकंटक पठार से निकलती हैं। सोन नदी उत्तर की ओर प्रवाहित होकर बिहार में पटना से पूर्व गंगा नदी में मिलती है। नर्मदा पश्चिम की ओर प्रवाहित होकर अरब सागर में गिरती है तथा महानदी पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
● केरल में पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ पाम्बर, भवानी और काबिनी हैं।
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