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■ तटीय मैदान (Coastal Plains)————>
● प्रायद्वीपीय पठार (दक्षिण के पठार) के दोनों किनारों (पूर्वी एवं पश्चिमी किनारों) पर संकीर्ण तटीय मैदानों का विस्तार है। पश्चिम में यह मैदान संकीर्ण एवं कटा-छँटा है जबकि पूर्व में चौड़ा एवं समतल है। इस मैदान का निर्माण समुद्री तरगों द्वारा अपरदन व निक्षेपण या पठारी नदियों के द्वारा बहाकर लाये गये अवसादों से हुआ है।
● यह पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत है। भारत की तट रेखा लगभग 61,00 किमी. लम्बी है।
● स्थिति और सक्रिय भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के आधार पर तटीय मैदानों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plain)
2. पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Coastal Plain)
■ पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plains)———–>
● पश्चिमी तटीय मैदान पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के मध्य स्थित एक संकीर्ण मैदान है जो उत्तर में कच्छ के तट (गुजरात) से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी (केप कमोरिन) तक अरब सागर के साथ-साथ विस्तृत है।
● गुजरात के मैदान को छोड़कर यह मैदान पूर्वी तटीय मैदान से कम चौड़ा है। इस मैदान की औसत चौड़ाई 65 किमी. एवं पश्चिम से पूर्व 10-80 किमी. है। इसकी अधिकतम चौड़ाई गुजरात में नर्मदा एवं तापी के महाने के समीप (80 किमी.) है।
● पश्चिमी तटीय मैदान जलमग्न तटीय मैदानों के उदाहरण हैं। ऐसा विश्वास है कि, पौराणिक शहर द्वारका, किसी समय में पश्चिमी तट की मुख्य भूमि पर स्थित था, जो अब पानी में डूबा हुआ है।
● जलमग्न होने के कारण पश्चिमी तटीय मैदान एक संकीर्ण पट्टी मात्र है और पत्तनों एवं बंदरगाहों के विकास के लिए प्राकृतिक परिस्थितियाँ प्रदान करता है।उत्तर में गुजरात तट से लेकर दक्षिण में केरल तट तक पश्चिमी तटीय मैदान को चार भागों में बाँटा जा सकता है-
1. गुजरात का मैदान——> गुजरात के कच्छ के रण से काठियावाड़ (गुजरात का तटवर्ती भाग), कच्छ के रण का मैदान समुद्री निक्षेपों में उमज्जन (Upliftment) से बना है।
2. कोंकण तट——–> उत्तर में दमन से लेकर दक्षिण में गोवा तक 530 किमी. लम्बा एवं 35-50 किमी. चौड़ा है।
3. कर्नाटक या कन्नड़ तट——–> कर्नाटक तटीय मैदान 525 किमी. लम्बा एवं 8-24 किमी. चौड़ा है जो उत्तर में गोवा से दक्षिण में मंगलूरु (कर्नाटक) तक का तटीय भाग है।
4. मालाबार तट———> उत्तर में मंगलुरु (कर्नाटक) से दक्षिण में – कन्याकुमारी (तमिलनाडु) तक के तटीय भाग। मालाबार तट 550 किमी. लम्बा एवं 20 से 100 किमी चौड़ा है। इस तटीय भाग में अनेक लंबे और सँकरे पश्चजल (Back Water) पाये जाते हैं जिन्हें केरल में कयाल (एक प्रकार की लैगून) कहा जाता है।
● 180 किमी. से भी अधिक लम्बी बेम्बनाड झील ऐसा ही एक अनूप है जिस पर कोच्चि बंदरगाह स्थित है। |
● कयाल (Back Waters) मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति है, जिसे मछली पकड़ने और अंतःस्थलीय नौकायन के लिए प्रयोग किया जाता है।
● पश्चिमी तटीय मैदान में बहने वाली अधिकतर नदियाँ पश्चिमी घाट पर्वत के पश्चिमी ढाल से निकलती हैं। ये नदियाँ छोटी व तीव्रगामी हैं। इसलिए इन नदियों के द्वारा मिट्टी का जमाव अधिक नहीं हो पाता। इनमें से अधिकतर नदियाँ अपने मुहाने पर डेल्टा न बनाकर ज्वारनदमुख (एश्चुअरी) का निर्माण करती हैं।
● इसके दक्षिण भाग में कई लैगून पाए जाते हैं, न्यूमंगलुरु और कोच्चि के बंदरगाह ऐसी ही लैगून पर स्थित हैं। यहाँ पर कुछ अवशिष्ट मैदानों का भी निर्माण हुआ है जिनमें सौराष्ट्र और कच्छ का मैदान मुख्य हैं।
● यहाँ पर स्थित प्राकृतिक बंदरगाहों में कांडला, मझगाँव, जवाहर लाल नेहरू (न्हावा शेवा), मुम्बई, मर्मागाओ, मंगलुरु और कोच्चि शामिल हैं।
● पश्चिमी तटीय मैदान मध्य में संकीर्ण है, परंतु उत्तर और दक्षिण में चौड़ा हो जाता है। दक्षिणी गुजरात से लेकर मुंबई तक पश्चिमी तटीय मैदान अपेक्षाकृत चौड़ा है जो दक्षिण की ओर सँकरा होता जाता है।
■ पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Costal Plains)———>
● पूर्वी घाट एवं पूर्वी तट के बीच पूर्वी तटीय मैदान स्थित है जो ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित स्वर्णरेखा नदी से कन्याकुमारी तक फैला है। पूर्वी तटीय मैदान के उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार, मध्य भाग को गोलकुण्डा तट तथा दक्षिणी भाग को कोरोमण्डल तट के नाम से जाना जाता है।
● पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में पूर्वी तटीय मैदान अधिक चौड़ा और उभरा हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई 120 कि.मी. है। इस मैदान में पूर्व की ओर बहने वाली और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के द्वारा विस्तृत डेल्टा का निर्माण किया जाता है। उभरा तट होने के कारण यहाँ पत्तन और पोताश्रय कम हैं।
● पूर्वी तटीय मैदान का निर्माण नदियों द्वारा तटवर्ती क्षेत्रों में जलोढ़ निक्षेपण का परिणाम है जहाँ विश्व के वृहद डेल्टा क्षेत्र स्थित हैं। इन डेल्टाओं का निर्माण महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के द्वारा लाये गये अवसादों के निक्षेपण से हुआ है। इस मैदान में लैगून (झील) की अवस्थिति है जिसका निर्माण तट तथा रोधिका के बीच सागरीय जल के बन्द होने के कारण होता है।
● इसी मैदान में चिल्का (ओडिशा) और पुलिकट (आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु सीमा पर) दो बड़ी लैगून झीलें हैं।
● चिल्का, महानदी डेल्टा के दक्षिण में स्थित है, जो 75 किमी. लम्बी है जबकि पुलीकट चेन्नई नगर के उत्तर में स्थित है। गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाओं के मध्य में कोल्लेरू झील (आंध्र प्रदेश) स्थित है। इस प्रकार कोल्लेरू झील एक डेल्टाई झील है। चिल्का भारत की सबसे बड़ी लैगून एवं खारे पानी की झील है।
● पूर्वी तट को वर्तमान में तीन लघु इकाईयों में विभक्त किया जाता हैः-
(i) उत्कल मैदान——–> यह ओडिशा तट के सहारे 400 किमी. की लम्बाई में विस्तृत है। महानदी डेल्टा क्षेत्र में इसकी चौड़ाई 100 किमी. है।
(ii) आन्ध्र मैदान——–> इसका विस्तार बेरहमपुर से पुलीकट झील के बीच है। इसके निर्माण में कृष्णा एवं गोदावरी के डेल्टाओं का प्रमुख योगदान है।
(iii) तमिलनाडु मैदान———> यह पुलीकट झील से कुमारी अंतरीप तक लगभग 675 किमी. लंबा एवं औसतन 100 किमी. चौड़ा है।आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय भाग में महेन्द्रगिरि की पहाड़ियाँ स्थित हैं। भारत का औसत समुद्र तल चेन्नई तट से मापा जाता है।
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